ओ रे चितेरे
धरा से गगन तक
चहुँ ओर रंगों के इसधरा से गगन तक
विस्मय विमुग्धकारी विस्तार
को देख कर हैरान हूँ कि
तूने समस्त व्योम पर
अपने भण्डार के
सारे मनोरम रंगों को
यूँ ही उलीच दिया है या
अपनी विलक्षण तूलिका से
तूने आसमान के कैनवस पर
यह अनुपम नयनाभिराम
चित्र बड़ी दक्षता के साथ
धीरे-धीरे उकेरा है !
ओ भुवन भास्कर
आज तेरी कलाकारी की
मैं भक्त हो गयी हूँ कि
कैसे तेरी धधकती दहकती
प्रखर रश्मियाँ
वातावरण में व्याप्त
नन्हे-नन्हे जल कणों के
संपर्क में आ उनकी आर्द्रता से
प्रभावित हो अपनी समस्त
ज्वलनशीलता को त्याग
इतने अनुपम सौंदर्य की सृष्टि
कर जाती हैं और
धरा से गगन तक
इन्द्रधनुष के मनभावन
रंगों की छटा चहुँ ओर
स्वयमेव बिखर जाती है !
इतना ही नहीं
इन्द्रधनुष के ये रंग
मानव हृदय में
अशेष आनंद भर देने के
साथ-साथ दे जाते हैं
एक चिरंतन सन्देश
जीवन्तता और सृजनात्मकता का
विवेक और संतुलन का
आध्यात्मिकता और अनन्तता का
और एक शाश्वत पीड़ा का
जो ना केवल
हर मानव के जीवन का
प्रतिबिम्ब हैं वरन्
अभिन्न हिस्सा भी हैं
उसकी नियति का !
इंद्रधनुष के सात रंग इन विशिष्ट गुणों के परिचायक हैं !
पीला – विवेक
हरा – संतुलन
नीला – आध्यात्मिकता
जामुनी – अनन्तता
बैंगनी – शोक, दु:ख
साधना वैद
इंद्रधनुष के सात रंग इन विशिष्ट गुणों के परिचायक हैं !
लाल – जीवन्तता
नारंगी – सृजनात्मकता पीला – विवेक
हरा – संतुलन
नीला – आध्यात्मिकता
जामुनी – अनन्तता
बैंगनी – शोक, दु:ख
No comments:
Post a Comment