दिख जाती है मुझे
स्वप्न में
आँचल से दुलराती माँ
!
कभी गरजती, कभी
बरजती
आँखों से धमकाती माँ
!
कान पकड़ती, चपत
लगाती
जाने क्यों तड़पाती
माँ !
फिर मनचाही चीज़ दिला
कर
घंटों हमें मनाती
माँ !
सारे दिन चौके में
खटती
चूल्हे को सुलगाती
माँ !
अपने हाथों थाल सजा
कर
खाना हमें खिलाती
माँ !
रूठी बिटिया को खुश
करने
मुँह में कौर खिलाती
माँ !
माथे पर पट्टी रख-रख
कर
ज्वर को दूर भगाती
माँ !
नींद ना टूटे, कहीं
हमारी
आँखों से बतियाती
माँ !
राई नोन से नज़र
उतारे
सीने से लिपटाती माँ
!
बिन बोले जो बूझे सब
कुछ
चहरे को पढ़ जाती माँ
!
रंगबिरंगी चूनर रँग
कर
हाथों में लहराती
माँ !
रात-रात भर जाग-जाग
कर
गोटे फूल लगाती माँ
!
मंदिर में भगवन् के
आगे
सबकी खैर मनाती माँ
!
चौबारे में दीपक रख
कर
सारे शगुन मनाती माँ
!
बच्चों की सारी पीड़ा
को
हँस-हँस कर पी जाती
माँ !
छोटी सी भी चोट लगे
तो
हाथों से सहलाती माँ
!
बच्चे की हर उपलब्धि
पर
फूली नहीं समाती माँ
!
दुनिया भर में जश्न
मनाती
इठलाती फिरती है माँ
!
हर पल आँखों में बसती है
सपनों में आती है
माँ !
मेरी हर पीड़ा को हर
कर
मुझे हँसा जाती है
माँ !
छूकर अपने कोमल कर
से
मुझे रुला जाती है
माँ !
ऐसी ही होती है शायद
जग में हर बच्चे की
माँ !
जीवन के तपते मरुथल
में
बादल बन छाती है माँ
!
जीवन पथ के शूल बीन
कर
फूल बिछा जाती है
माँ !
बच्चा चाहे जैसा भी
हो
माँ तो बस होती है
‘माँ’ !
हो कोई भी देश विश्व
में
ऐसी ही होती है माँ
!
साधना वैद
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