सोचा अगर उसको ‘कसौटी’ पर परखने का कभी ,
भारी पड़ेगी सब पे वह
यह बात भी सुन लें सभी !
है आज की नारी निपुण
हर कार्य में वह दक्ष है ,
वह है बनी घर के
लिये यह सोच का इक पक्ष है !
हो चाँद सूरज की चमक
नित क्षीण जिसकी आब से ,
यह विश्व आलोकित है
उस जगदम्बिके के ताप से !
वह है सदय, कोमल,
करुण, है वत्सला जग के लिये ,
पर चण्डिका भी है मनुज
के शत्रु असुरों के लिये !
साधना वैद
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