हरी घास के मैदान में एक चींटी अपने आकार से कहीं बड़े खाने के टुकड़े को लेकर अपने बिल की तरफ जा रही थी ! आसमान खुला था और मौसम भी सुहाना था ! घास के मैदान के आख़िरी छोर पर खड़े यूकेलिप्टस के ऊँचे पेड़ के पीछे एक पहाड़ी थी ! पहाड़ी से एक सुन्दर झरना बहता था जिससे एक पतली सी जलधारा बन गयी थी ! उसी जलधारा के किनारे झोंपड़ी बना कर एक साधू बाबा रहते थे !
नरम घास को खाते-खाते एक नन्हा सा खरगोश अपने बिल से दूर बीच मैदान
में आ गया था हालाँकि उसकी माँ ने उसे झाड़ियों में ही रहने और बीच मैदान में ना
जाने की हिदायत दी थी ! लेकिन हरी घास खाते-खाते वह कब मैदान के बीच पहुँच गया उसे
पता ही नहीं चला !
यूकेलिप्टस की ऊँची डाल पर एक चील का घोंसला था ! वहाँ बैठ कर चील
अपनी तेज़ आँखों से शिकार की तलाश में घात लगाए बैठी थी ! चील को खरगोश दिख गया !
उसने अपने डैने फैलाए और शिकार की तरफ तेज़ी से हवा में तैरते हुए चुपचाप उतरने लगी
! जैसे ही उसकी परछाईं ज़मीन पर खरगोश के पास पड़ी उसे खतरे का आभास हो गया !
लेकिन उसका घर तो दूर था और पास में छिपने के लिये कोई झाड़ी भी नहीं थी ! वह क्या करे, किससे मदद माँगे, वहाँ तो कोई भी नहीं था ! तभी उसे एक चींटी खाने का एक बड़ा सा टुकड़ा ले जाते हुई दिखी ! डूबते को तिनके का सहारा ! खरगोश ने चींटी से ही मदद की गुहार लगाई ! चींटी ने तुरंत अपना बोझ ज़मीन पर रखा और खरगोश से कहा,
लेकिन उसका घर तो दूर था और पास में छिपने के लिये कोई झाड़ी भी नहीं थी ! वह क्या करे, किससे मदद माँगे, वहाँ तो कोई भी नहीं था ! तभी उसे एक चींटी खाने का एक बड़ा सा टुकड़ा ले जाते हुई दिखी ! डूबते को तिनके का सहारा ! खरगोश ने चींटी से ही मदद की गुहार लगाई ! चींटी ने तुरंत अपना बोझ ज़मीन पर रखा और खरगोश से कहा,
“मेरे पीछे खड़े हो जाओ !” और खुद अपने दो पैरों पर खड़े होकर चील को डपट
कर बोली,
“खबरदार ! इसे हाथ मत लगाना !”
चील ज़रा सी चींटी की हिम्मत देख कर ठहाका मार कर हँसी और बोली,
“क्यों नहीं ? यह तो मेरा शिकार है !”
चींटी ने कहा, “इसने मुझसे मदद माँगी है ! तुम इसे छोड़ दो नहीं तो ठीक
नहीं होगा !”
“अच्छा ! तू पिद्दी सी चींटी मुझे धमका रही है ! कभी शीशे में अपने
आपको देखा है ? तू मेरा क्या बिगाड़ सकती है !”
घमंड में चूर चील बेचारे खरगोश को उठा कर ले गयी ! दुःख और गुस्से से भरी
चींटी सब देखती रही ! उस समय तो वह कुछ नहीं कर सकी लेकिन तभी उसने मन में यह ठान लिया कि वह इस दुष्ट चील को सबक ज़रूर
सिखायेगी !
वह तुरंत उस पेड़ की तरफ चल दी जिस पर चील रहती थी ! कई दिन में वह पेड़ के ऊपर चढ़ कर उस डाल तक भी पहुँच गयी जिस पर चील का घोंसला था ! चींटी ने देख लिया कि घोंसले में चील का एक अंडा रखा हुआ है ! घोंसले के अंदर जाकर उसने अंडे को नीचे लुढ़का दिया जो गिरते ही फूट गया ! चील ने लौट कर जब यह नज़ारा देखा तो वह बहुत दुखी हुई ! सोचने लगी कि यह पेड़ अब सुरक्षित नहीं रहा ! अबकी बार वह घोंसला पहाड़ी के ऊपर चट्टानों के बीच बनायेगी !
चींटी ने चील को पहाड़ी पर घोंसला बनाते हुए देख लिया और वह उधर भी चील
का पीछा करने के लिये चल पड़ी ! कई दिनों में चलते-चलते पहले वह पहाड़ी तक पहुँच गयी
और फिर धीरे-धीरे चढ़ते हुए एक दिन उन चट्टानों तक भी जा पहुँची जहाँ चील का
घोंसला बना हुआ था उसने देखा कि उसमें एक अंडा भी रखा हुआ था ! मन ही मन चींटी बोली, “देख बच्चू अब
मैं तुझे कैसे सबक सिखाती हूँ !” एक बार फिर उसने अंडे को घोंसले से नीचे गिरा
दिया ! पत्थरों से लुढ़क कर पहाड़ी से नीचे गिर अंडा टूट गया ! इस बार जब चील आई तब
तो वह हाय-हाय करने लगी, “अरे कौन मेरा दुश्मन है जो मेरे पीछे पड़ गया है ! ऐसे तो
एक दिन मेरा वंश ही खत्म हो जाएगा !” हैरान परेशान घूम-घूम कर वह सब तरफ किसी सुरक्षित
स्थान की तलाश में जुट गयी !
इधर नदी के पास रहने वाले साधू बाबा ने एक महीने तक सूर्य भगवान के
सामने दोनों हाथों को जोड़ आँखें मूँद एक पाँव पर खड़े रह कर कठिन तपस्या करने का
व्रत ले लिया ! चील ने जब उन्हें कई दिन तक इसी तरह खड़े देखा तो सोचा कि यदि मैं
अपना अंडा इनके सिर की जटाओं में रख दूँ तो वह बिलकुल सुरक्षित रहेगा और उसने ऐसा ही किया
पर चींटी तो घास के मैदान से सब कुछ देखती रहती थी ! वह वहाँ भी पहुँच गयी ! साधू
बाबा के पैरों पर चढ़ते हुए पहले उनकी पीठ पर और फिर उनकी बगल तक वह जा पहुँची !
उसने ज़ोर से साधू बाबा को काट लिया ! साधू बाबा ने घबरा के हाथ से जैसे ही उसे झटकना
चाहा उनका सिर हिल गया और अंडा गिरा धड़ाम ! लो अंडा तो फिर फूट गया ! इस बार यह सारा किस्सा चील की
आँखों के सामने ही हुआ ! चील ने जब चींटी को देखा तो सारा माजरा उसे समझ में आ गया
! वह चींटी के सामने जाकर बैठ गयी और बोली,
“तुम क्यों मेरे पीछे पड़ी हो ? मुझे माफ कर दो !”
चींटी बोली, “एक दिन मैंने भी तुमसे खरगोश को ना मारने के लिये कहा था
पर तुमने नहीं माना और मुझे छोटा और कमज़ोर समझ मेरा अपमान किया ! यह सब मैंने
तुम्हें सबक सिखाने के लिये ही किया था !”
चींटी चील के सामने तन कर खड़ी थी और उसके चेहरे पर जीत की मुस्कान थी
! याद रखो इरादा पक्का हो तो कमज़ोर से कमज़ोर भी अपने से ताकतवर को धूल चटा सकता है
!
बचपन में सुनी अनेक कहानियों का मूल लेखक कौन था, सुनते सुनाते इनमें कितने बदलाव हो गये और आगे इनका क्या स्वरुप होगा इसके बारे में तो कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन ये कहानियाँ निश्चित रूप से मनोरंजक भी हैं और शिक्षाप्रद भी इसलिए इन्हें बच्चों को ज़रूर सुनाना चाहिये !
साधना वैद
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