Saturday, December 5, 2015

कुछ ग़मज़दा सी कहानियाँ



कुछ अनछुई सी निशानियाँ
कुछ डगमगाती रवानियाँ
जाने किस खला में बिला गयीं
तेरे नाम थीं जो कहानियाँ !

हम कहा किये जिन्हें उम्र भर
जो सुनी नहीं तूने एक पल
वो फलक पे भी हैं क्यूँ यूँ दर दर
मेरे रंजो ग़म की कहानियाँ !

आँसू मेरे सब खुश्क हैं
सब दर्द सीने में दफ्न हैं
जाने किस छलावे की आड़ में
खामोश सी हैं कहानियाँ !

जो थीं हर फिज़ां पे लिखी गयीं
जो थीं हर हवा से कही गयीं
जिन्हें फूल गुंचे सुना किये
मायूस सी हैं कहानियाँ !

जिन्हें आस थी बस एक दाद की
जो बसी थीं आँखों में ख्वाब सी
वो ही अश्क बन के ढुलक गयीं
कुछ ग़मज़दा सी कहानियाँ !


साधना वैद

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