कुछ अनछुई सी
निशानियाँ
कुछ डगमगाती रवानियाँ
जाने किस खला में
बिला गयीं
तेरे नाम थीं जो
कहानियाँ !
हम कहा किये जिन्हें
उम्र भर
जो सुनी नहीं तूने
एक पल
वो फलक पे भी हैं
क्यूँ यूँ दर ब दर
मेरे रंजो ग़म की
कहानियाँ !
आँसू मेरे सब खुश्क
हैं
सब दर्द सीने में
दफ्न हैं
जाने किस छलावे की
आड़ में
खामोश सी हैं
कहानियाँ !
जो थीं हर फिज़ां पे
लिखी गयीं
जो थीं हर हवा से
कही गयीं
जिन्हें फूल गुंचे
सुना किये
मायूस सी हैं
कहानियाँ !
जिन्हें आस थी बस एक
दाद की
जो बसी थीं आँखों
में ख्वाब सी
वो ही अश्क बन के ढुलक
गयीं
कुछ ग़मज़दा सी
कहानियाँ !
साधना वैद
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