साधना जी उस व्यक्तित्व का नाम है जो
जीवन भर अपनी साधना और साफगोई के लिए जाना जाता है | बात लगभग
सात वर्ष पूर्व की है जब लेखिका और उनके ब्लॉग ‘सुधीनामा ‘ से मेरा नया-नया परिचय हुआ था | उनके लेखन में एक विचित्र सा आकर्षण मैंने हमेशा अनुभव किया | अतिशयोक्ति नहीं होगी यदि मैं कहूँ कि उन दिनों मुझे उनकी हर एक रचना एक नए लोक में ले जाती थी
|
और आज जब उनकी रचनाओं के संग्रह की पांडुलिपि मेरे हाथों में
है तो मुझे बहुत रोमांच हो रहा है | क्या गजब का लिखती हैं आप | दुनिया का कोई कोना उनकी लेखनी से अछूता नहीं रहा | पहले उनके गद्य विधा में लिखे
विचार लोगों के दिलों में
जागरूकता लाते थे और उनकी कवितायें तो मानो पाठक को हरी मखमली घास पर ले जाती हैं | जैसा जुझारू उनका व्यक्तित्व है वैसा ही उनका लेखन
हजारों साल के जमे कुहासे को चीर देता है | संयत भाषा में उनका मन अपने को उड़ेलता ही नहीं पाठक को विगलित भी कर देता
है |
पूरी की
पूरी जिंदगी १५१ कविताओं में सिमट आई है
| आप विषय सूची पर एक निगाह तो डालिए जीवन के सभी रंग उपस्थित हैं | ‘बिटिया’, ‘शुभकामना’, ‘टूटे घरौंदे’, ‘अब और नहीं’, ‘मेरा परिचय’, ‘वेदना की
राह पर’, ‘मैं तुम्हारी माँ हूँ’, ‘ममता की छाँव’, ‘मैं वचन देती हूँ माँ’, ‘पुराने जमाने की माँ’ और ‘गृहणी’ के रूप में
पूरी की पूरी कायनात आपके आगे आ जाती है | संघर्ष का परचम लहराती कविताएँ
जीवन के लिए वह पाथेय दे जाती हैं जिनसे जीवन मार्ग सुगम हो जाता है | उनकी कवितायेँ आपको केवल स्वप्न लोक में ही नहीं ले
जातीं बल्कि जीवन के कठोर सत्य का उद्घाटन कराती हैं | समाज की हर
घटना उनकी कविता का वर्ण्य विषय बन जाती है | यह संग्रह तो बहुत पहले प्रकाश में आ जाना चाहिये था पर
जब जागो तभी सवेरा |
कविताओं का
यह संकलन वर्तमान पीढ़ी के लिए नया सन्देश है ! दुखों से घबरा कर भागना सहज है पर संघर्ष कर
उन्हें अपनी उपलब्धि बना लेना हर किसी के बस का
नहीं होता |
साधना जी का काव्य संकलन बहुत
जल्दी पाठकों के हाथ में हो ऐसी मेरी कामना है | अशेष शुभकामनाओं के साथ |
बीना शर्मा
(प्रोफ़ेसर बीना शर्मा)
केन्द्रीय
हिन्दी संस्थान, आगरा
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