(१)
काम क्रोध मद लोभ सब, हैं जी के जंजाल
इनके चंगुल जो फँसा, पड़ा काल के गाल !
(२)
परमारथ की राह का, मन्त्र मानिये एक
दुर्व्यसनों का त्याग कर, रखें इरादे नेक !
(३)
माया ममता मोह से, रहें सदा जो दूर
निकट रहें प्रभु के सदा, सुख पायें भरपूर !
(४)
रिश्ते ये अनमोल हैं, मत कीजे अपमान
तोल मोल कर बोलिये, देकर सबको मान !
(५)
जिसका अंतस प्रेम औ' करुणा का आगार
मानवता हित है वही, एक बड़ा उपहार !
(६)
प्रभुजी मुझको दीजिये, बस इतना वरदान
नैन भरें पर पीर से, पर दुख कसकें प्राण !
(७)
हँसते-हँसते पी लिये, हमने ग़म हर बार
ऐसे ही तर जायेंगे, भवसागर के पार !
साधना वैद
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