अस्पताल के बिस्तर पर
अर्धमूर्छित अवस्था में पड़ी माँ को मैं किसी तरह संतरे का जूस फीडर से पिलाने की
कोशिश कर रही थी कि दरवाज़े पर किसीने दस्तक दी ! फीडर मेज़ पर रख दरवाजा खोला तो
मेरे कॉलेज की सहयोगी सरिता एकदम मेरे गले से लिपट गयी !
“ये क्या हो गया
आंटी को सुधा ! मुझे तो कल ही पता चला !” रुंधे स्वर में बोलती आँखों में आँसू भरे
मेज़ पर सेव का पैकेट रखते हुए सरिता माँ के पास ही कुर्सी खींच बैठ गयी !
“क्या बताएं सरिता !
आजकल के ये बेलगाम लड़के इतनी रैश ड्राइविंग करते हैं कि औरों की सेफ्टी की तो
उन्हें चिंता ही नहीं रहती !” मैं माँ के सिर के नीचे तकिया ठीक से लगा कर पीछे
मुड़ी कि सरिता के मोबाइल पर बीप बज उठी !
“बिलकुल सही कह रही
हो तुम लेकिन कहाँ हुआ एक्सीडेंट ? डॉक्टर क्या कहते हैं ? कितने दिन में ठीक हो
जायेंगी आंटी ?” सरिता की आँखें अपने मोबाइल पर गढ़ गयी थीं ! इतने दिनों के बाद
कोई मेरा दर्द बाँटने आया था ! सरिता को देख मेरा मन भर आया ! दूसरे पलंग पर फैले
कपड़ों और घर से लाये हुए सामान को समेटते हुए मैं उसे बताने लगी !
“पिछले सोमवार को माँ
शाम को मंदिर से लौट रही थीं तभी तेज़ रफ़्तार से आती बाइक से वो टकरा कर गिर गयीं !
उनकी कूल्हे की हड्डी में फ्रैक्चर हो गया ! सिर में भी गहरी चोट है ! अभी तक तो
उन्हें ठीक से होश भी नहीं आया है ! पता नहीं कितने दिन और अस्पताल में रहना होगा
! बहुत मँहगा इलाज चल रहा है ! रोज़ दो हज़ार रुपयों के इंजेक्शंस लग रहे हैं ! समझ
नहीं आ रहा है कि कैसे इन्तज़ाम होगा !’’ सहानुभूति की अपेक्षा में मैं सरिता की ओर
मुड़ी ही थी एक ज़ोरदार ठहाके की आवाज़ सुनाई दी ! “अरे वाह ! सुन तो सही कितना
मज़ेदार जोक है !’’ सरिता लोटपोट हुई जा रही थी और मैं हतप्रभ सी उसे देखे जा रही
थी !
साधना वैद
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