अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष प्रस्तुति !
बड़े दुःख के साथ आज आप
सबके साथ अपनी पीड़ा बाँटना चाहती हूँ ! औरों का तो पता नहीं लेकिन मुझे आज
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर ज़रा भी गर्व की अनुभूति नहीं हो रही है ! विश्व में
महिलाओं ने प्रगति के रास्ते पर न जाने कितने परचम लहराए हैं, सफलता के न जाने
कितने कीर्तिमान स्थापित किये हैं और यश सिद्धि के न जाने कितने सोपान चढ़ कर वे
सर्वोच्च शिखर पर जा पहुँची हैं लेकिन हमारे देश में महिलाओं के साथ आज भी जिस तरह से भेदभाव
किया जाता है, उनके साथ जिस तरह से दोमुहाँ व्यवहार किया जाता है उससे घोर वितृष्णा
का अहसास होता है !
हमारे अपने देश में महिलायें इन दिनों पंडितों
और तथाकथित धर्माचार्यों के कट्टरवाद की शिकार हो
रही हैं उसे देख कर मुझे बहुत पीड़ा होती है ! कुछ दिन पूर्व शिगनापुर में शनिदेव के
मंदिर में महिलाओं के प्रवेश निषेध का समाचार सुना था तो आश्चर्य मिश्रित दुःख हुआ
! अब नासिक के पास त्र्यम्बकेश्वर महादेव के मंदिर में भी महिलाओं के प्रवेश निषेध
का किस्सा सामने आ रहा है ! ऐसे प्रसंगों के परिप्रेक्ष्य में अंतर्राष्ट्रीय
महिला दिवस पर जब महिलाओं के उत्थान और महात्म्य की खोखली बातें बढ़ चढ़ कर की जाती
हैं तो सचमुच बहुत क्षोभ होता है ! हम किस झूठी दुनिया में जी रहे हैं ! भगवान की
पूजा अर्चना के लिये भी महिला और पुरुष में भेद किया जाता है ! क्या यह किसी क़ानून
की किताब में लिखा है कि किसी मंदिर विशेष में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है ? अगर
नहीं लिखा है तो किस अधिकार से वहाँ के पंडित पुजारी उन्हें पूजा करने से रोक सकते
हैं ? और अगर सदियों से चली आ रही परम्परा और प्रथा की बात की जाती है तो ऐसी गलत प्रथाओं
और परम्पराओं का टूटना ही बेहतर है जो महिलाओं को उनके बुनियादी अधिकारों से वंचित
रहने के लिये विवश करें !
क्या भगवान का स्टेटस भी शहर और स्थान के अनुरूप बदल
जाता है ? जब अन्य शहरों में महिलायें शनिदेव की या शिवजी की पूजा मंदिर के अंदर
जाकर कर सकती हैं और वहाँ के पंडित पुजारियों को उनके पूजा करने से कोई आपत्ति
नहीं होती तो शिगनापुर के शनिदेव के मंदिर और नासिक के पास त्र्यम्बकेश्वर महादेव
के मंदिर के पुजारियों को क्यों आपत्ति होती है ? क्या अन्य शहरों के मंदिरों में
स्थापित शनिदेव और महादेव शिगनापुर और नासिक के भगवान से दोयम दर्जे के हैं ? क़ानून
की किताबों में जब इस तरह का कोई निषेध नहीं है तो इन स्थानों का प्रशासन और पुलिस
आंदोलनकारियों को दबाने के स्थान पर इन कट्टरवादी पंडितों और धर्माचार्यों पर लगाम
क्यों नहीं कसते ? या ये भी पंडित पुजारियों के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं ?
अन्तर्राष्ट्रीय
महिला दिवस पर अपने देश में महिलाओं को इस तरह के पक्षपात और भेदभाव का सामना करना
पड़ रहा है इससे बड़ी शर्म की और क्या बात हो सकती है ! ज़रूरत है कि पुरुष प्रधान
हमारे इस समाज में इस तरह की रुग्ण मानसिकता से पुरुष स्वयं को मुक्त करें और
महिलाओं पर व्यर्थ की निरर्थक वर्जनाएं लाद कर उनका मानसिक शोषण करने से बाज आयें ! आज के
दिन यदि महिलाओं के मान की रक्षा कर उन्हें इस विवाद से मुक्त कर मंदिर में प्रवेश
की अनुमति दे दी जाती है तो प्रगति की राह पर यह उनकी सबसे महत्वपूर्ण जीत होगी और
सच्चे अर्थों में इस महिला दिवस पर वे आत्मविश्वास और स्वाभिमान से भर उठेंगी !
उन्हें अपने पर भरोसा हो सकेगा कि अपने दम पर वे भी समाज में कोई सकारात्मक बदलाव
लाने में सक्षम हैं ! और तब ही महिला दिवस मनाने में सच्चा आनंद आयेगा !
साधना वैद
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