Wednesday, August 3, 2016

'संवेदना की नम धरा पर'... आदरणीय आर एन शर्मा जी की नज़र से


संवेदना की नम धरा पर...

मैंने साधना वैद, जो इस खूबसूरत काव्य संकलन की रचयिता हैं और जिनसे मेरी पहचान फेसबुक के माध्यम से हुई , से इस संकलन को पढ़ने की इच्छा व्यक्त की थी और जानना चाहा था की ये कहा से प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने खुद ही इसकी एक स्वहस्ताक्षरित प्रति मुझे भेज दी जो मुझे 30 अप्रैल को बरेली में प्राप्त हुई।
इसमें की कुछ कवितायें मैंने वहीँ पढ़ लीं थी और बाकी यहाँ मुम्बई लौटने के उपरान्त पढ़ी। हालांकि की मुझे समय काफी लग गया।
इस संकलन में 151 कवितायें है। इन कविताओं में हमारे जीवन का कोई भी रंग अछूता नहीं रहा है। साधना जी ने बड़े सच्चे ह्रदय से इन कविताओं के माध्यम से हमारे चारो ओर जो घट रहा है के विषय में बगैर किसी लाग लपेट के अपनी बात रखी है। कविताएं एकदम सीधी और सच्ची है। न ये बनावटी हैं न सजावटी। पढ़ते समय हमेशा साधना जी की मासूमियत, स्पष्टवादिता और उनके कवि ह्रदय की परिपक्वता सामने आती रही।
कुछ पंक्तियां जो याद रह गईं और जिनमे कविमन की सच्चाई और परिपक्वता झलकती है ये रहीं:
" लो अब अमृत घट छलक रहा
कुछ तुम पी लो कुछ मैं पी लूँ
जीवन की गाथा व्यथा बनी
अंतर में घोर अँधेरा है
जो फिर ये जीवन मिल जाए
कुछ तुम जी लो कुछ मैं जी लूँ।"
...

" कहीं कोई बेहद नाज़ुक ख्याल
चीख कर रोया होगा"
...

" अधिकारों के प्रश्न खड़े हैं
काम बंद, सन्नाटा है"
...

" उस अर्जुन की दुविधा तुमने खूब मिटाई
आज करोड़ों अर्जुन दुविधाग्रस्त खड़ें है"
...

" पर उस स्पर्श में वो स्निग्धता
कहाँ होती है माँ,
जो तुम्हारी बूढी उँगलियों की छुअन में
हुआ करती थी"
...

" मेरी अहमियत
तुम्हारे घर में,
तुम्हारे जीवन में
मात्र एक मेज या कुर्सी की ही है"
...

महज़ ये ही नहीं, बल्कि संकलन की सभी कविताओं में जो आवाज़ सामने उभर के आती है वो इस बात का प्रमाण है कि साधना जी खुद अपने आस पास घट रहीं घटनाओं की साक्षी रहीं हैं। उनकी कल्पना और प्रतीकात्मकता ने कविता में जैसे समाज की वो कड़वी सच्चाई उजागर की है जिसे हम देखते तो रोज़ हैं पर उसे अनदेखा कर देतें हैं। बात चाहे रिश्तों की हो या अभावग्रस्त तबके की, अकेलेपन की हो या समाज में स्त्री के दमन की या फिर कुछ और, कोई भी रंग अछूता नहीं रहा है उनसे। कम शब्दों में इतना कुछ कह जाना बिलकुल ऐसा ही है जैसे एक छोटे कैनवास पे सारी कायनात दिखा दी गयी हो।
उनकी कविताओ में यथार्थवाद तो है ही , प्रयोगवाद का भी बाहुल्य है। निष्कर्षतः ये संकलन कवी के कंचन जैसे पाक साफ हृदय से निकली कविताओं का एक अनमोल खजाना है। बस उनके जैसा ही संवेदनशील पाठक चाहिए उनका निचोड़ समझने के लिए। वैसे ऐसे संवेदनशील लोग ही कविता समझते भी हैं और पढ़ते, सुनते भी है।
"संवेदना की नम धरा पर" जो नाम है इस काव्य संकलन का वो भी सटीक है और उसका परिचय इसी नाम की एक कविता की निम्न पंक्तियों से मिल जाता है:
" और फिर एक दिन
संवेदना की नम धरा पर
भावनाओं का खूब सारा
खाद पानी डाल
अपने सारे कौशल के साथ
मैंने इन्हें बो दिया
लेकिन इनमें फूल कम
कांटे ज्यादह निकलेंगे
ये कहाँ जानती थी"...

Her voice and random thoughts emerge as that of a sensitive poet that Sadhna ji definitely is...


आपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार आदरणीय शर्मा जी कि आपने मेरी इन कविताओं को इतने ध्यान से पढ़ा और उन पर अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया व्यक्त की ! आपकी समीक्षा ने नि:संदेह रूप से मेरे इस काव्य संकलन के सौंदर्य और महत्व को और निखारा है और इसके लिये मैं आपकी सदा ऋणी रहूँगी ! 

साधना वैद

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