एक नेह दीप
जिसे उर अंतर के
उज्ज्वल
प्रेम की बाती
और अनन्य विश्वास के घृत
से
निश्छल निष्ठा और
सम्पूर्ण समर्पण के
साथ
वर्षों पहले बड़े
प्यार से
हम दोनों ने बाला था
और जिसे तुम वक्त की
चुनौतियों से हार कर
यूँ ही छोड़ आये थे
एक नितांत निर्जन
वीराने में
बुझ जाने के लिये !
उसी दीप को
अनेकों आँधियों
तूफानों से
हाथों की ओट दे मैंने
अपने मन
मंदिर में
अभी तक प्रज्वलित
रखा है
ना कभी उसकी बाती को
चुकने दिया
ना ही कभी उसकी लौ को
मद्धम
पड़ने दिया !
भूले से जो तुम्हारे
कदम
इस राह पर पड़ गये थे
तो मेरे हृदय गवाक्ष
से
अंदर झाँक कर तुमने इस
प्रखर प्रज्वलित दीप
को
देख तो लिया था ना ?
लेकिन इस नेह दीप का
बुझना अब तय है
क्योंकि उज्ज्वल
प्रेम की
यह बाती अब चुकने
लगी है
और विश्वास का घृत
तो
उसी दिन से घट चला
था
जिस दिन तुम इसे हमारे
पवित्र प्रेम के
समाधि स्थल पर
उपेक्षित छोड़ आये थे
!
तुम्हें फिर दोबारा
मेरे हृदय गवाक्ष
में झाँकने का
अवसर मिले न मिले
लेकिन आज इसकी लौ
पहले भी कहीं अधिक
प्रखर और सुन्दर है
ठीक वैसे ही जैसे
किसी
मरणासन्न व्यक्ति की
चेतना
उसकी मृत्यु से कुछ
क्षण पूर्व
और अधिक चैतन्य और
अधिक जीवंत हो जाती है !
साधना वैद
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