मंहगी पड़ी
बड़ा मोल चुका के
मिली आज़ादी !
टुकड़े हुए
बँट गया वतन
रोया भारत !
आज़ादी आई
ढेर सा अवसाद
साथ में लाई !
भागे अँग्रेज़
उग्र था आंदोलन
विदेशी जो थे !
कैसे निपटें
देशी कुशासन से
त्रस्त जनता !
युद्ध आसान
बाहर के बैरी से
हारें खुद से !
देख रवैया
शर्मिन्दा भारत माँ
कर्णधारों का !
वृद्ध हो चुकी
है आज भी हताश
माँ स्वाधीनता !
कैसे मनाएं
स्वतन्त्रता दिवस
क्षुब्ध मन से !
दंगे फसाद
घोर अराजकता
कसैला स्वाद !
लोभी नेतृत्व
सुस्त सी सरकार
दुखी जनता !
कोई तो पल
दे दो सुशासन का
खुश हो प्रजा !
साधना वैद
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