आज कामवाली को आने में देर हो गयी थी ! अम्मा जी का मूड खराब था ! बहू
सरिता किचिन में सबका नाश्ता बनाने में व्यस्त थी ! रात के बर्तन मँजे ना होने से
उसे असुविधा हो रही थी ! अम्मा जी को अपने चाय नाश्ते का इंतज़ार था ! तभी ऊँचा सा
स्लीवलेस टॉप पहने ढीली-ढीली जींस को ऊपर खिसकाती काम वाली की बेटी पुनिया ने घर
में कदम रखा ! पुनिया पर नज़र पड़ते ही अम्मा जी का पारा हाई हो गया !
“आ गईं महारानी ! सिंगार पटार से फुर्सत मिले तो काम की सुध आये ना ! घड़ी
देखी है क्या टाइम हुआ है ? और क्यों री, ये कैसे बेढंगे कपड़े पहन कर आई है ! आग
लगे इस फैशन को ! ढंग के कपड़े नहीं हैं तेरे पास ?”
सहमी सी पुनिया बिना कुछ बोले जल्दी से रसोई में घुस गयी ! जींस के लूप्स
में उसने मुट्ठी में बंद सुतली डाल उसे कस कर बाँध लिया और सिंक में पड़े बर्तनों
को धोने लगी ! अम्मा जी की फटकार से सरिता का ध्यान पुनिया के कपड़ों की ओर चला गया
! उसे याद आया कि पुनिया ने जो जींस और टॉप पहन रखा था उसकी बेटी श्रेया का था
जिसे उसने पिछली होली पर पहना था और बाद में उसने वह कपड़े काम वाली को दे दिए थे !
वह चुप ही रही ! कुछ भी कहती तो अम्मा जी और गरम हो जातीं ! जल्दी से गरमागरम मैथी
का पराँठा और अम्मा जी की फेवरेट गुड़ अदरक की चाय उसने अम्मा जी के सामने रख दी
ताकि उनका ध्यान भी बँट जाए और गुस्सा भी शांत हो जाए !
तभी पुनिया की माँ कमला ने घर में प्रवेश किया ! जल्दी से झाडू उठा उसने
कमरे की सफाई शुरू की !
“पलंग के नीचे ज़रा ढंग से झाडू लगाना ! बच्चों की रबर पेन पेन्सिल गिर जाती
हैं तो मिलती ही नहीं हैं ! बस सामने-सामने झाडू लग जाती है ! कमर ना झुकानी पड़
जाए कहीं !” अम्मा जी फिर भड़कीं !
कमला ने लगभग लेट कर डबल बेड के नीचे झाडू घुमाई ! आँचल सिर से हट गया और
आधुनिक शैली का बदन दिखाऊ ब्लाउज अम्मा जी की क्रोधाग्नि में और अधिक आहुति देने
लगा !
“देखो तो ज़रा ! कैसे कपड़े पहन कर आई हैं दोनों माँ बेटी ! सारा फैशन इन्हीं
लोगों के सिर चढ़ा है ! लाज शर्म तो सब चूल्हे में झोंक आई हैं दोनों !”
कमला रुआँसी हो गयी !
“ऐसा काहे को बोलती हो अम्मा जी ! हमारी क्या औकात कि हम फैशन करें !
पुनिया के कपड़े बहूजी ने दिए थे ! और मेरा साड़ी ब्लाउज बगल वाले भल्ला जी वाली
बीबी जी ने दिए हैं ! इतनी मंहगाई में बच्चों को भरपेट रोटी तो खिला नहीं पाते
फैशन कहाँ से करेंगे ! हम लोगों की ज़िंदगी तो आप लोगों की उतरन पहन कर ही गुज़र जाती
है ! नये कपड़े खरीदने को पैसे कहाँ हैं हमारे पास अम्मा जी !” चेहरा लटकाये वह झाडू से कूड़ा बटोरने लगी !
हतप्रभ सरिता सोच रही थी बेचारी कमला और पुनिया किसके हिस्से की डाँट खा
रही हैं !
साधना वैद
No comments:
Post a Comment