“दादी, आप मुझे छोड़ के मत जाओ ! पापा मुझे होस्टल भेज देंगे !” आठ साल की नन्ही दिशा दादी से लिपट कर बेतहाशा रोये जा रही थी ! दादी का कलेजा चाक हुआ जा रहा था लेकिन भरे मन से इंदौर वापिस जाने के लिए वो धीरे-धीरे अपना सामान समेट रही थीं ! जब स्थिति अपने नियंत्रण में ही न हो तो रुकने से फ़ायदा भी क्या ! दिशा को अपने अंक में समेटते हुए दादी उसे समझा रही थीं, “ऐसे रोते नहीं बेटा ! होस्टल में तुम्हें बहुत सारे दोस्त मिल जायेंगे ! यहाँ तो तुम बिलकुल अकेली हो जाती हो पापा के ऑफिस जाने बाद ! वहाँ तुम्हारा खूब मन लग जाएगा ! फिर तो तुम दादी को भी भूल जाओगी ! है ना ?”
“नहीं दादी ! मुझे होस्टल नहीं जाना ! आप मुझे अपने साथ इंदौर ले चलिए ! मैं आपकी हर बात मानूँगी ! आपको बिलकुल तंग नहीं करूंगी ! प्लीज़ प्लीज़ दादी ! मैं होस्टल नहीं जाउंगी ! मम्मा क्यों चली गयीं भगवान के पास ! मुझे कोई प्यार नहीं करता !” दिशा बिलख रही थी और निरुपाय दादी उसे किसी भी तरह से चुप नहीं करा पा रहीं थीं !
विवाहोपरांत दस वर्ष की लंबी अवधि तक भी जब तमाम दवा इलाज के बाद उनकी बहू वत्सला की गोद हरी न हुई तो तीन माह की नन्ही दिशा को शहर के अनाथाश्रम से उनके बेटे सौरभ और वत्सला ने गोद ले लिया ! घर का हर सदस्य दिशा पर जान छिडकता और वत्सला की तो जान ही जैसे दिशा में बसती थी ! बाबा दादी भी दिशा के मोह से बधे हर दूसरे तीसरे महीने इंदौर से जबलपुर आ जाते ! एक अनाथ बच्ची का जीवन संवर गया और सूने घर में नवागत की किलकारियां गूँज उठीं ! ईश्वर की इस असीम अनुकम्पा पर सब नतशिर होकर कृतज्ञ थे !
सब कुछ अच्छी तरह से चल रहा था ! दिशा छ: वर्ष की हो गयी थी ! तभी उसके जीवन में जैसे भूचाल आ गया ! वत्सला को ब्लड कैंसर हो गया और वह नन्ही दिशा को बिलखता छोड़ भगवान के पास चली गयी ! पत्नी के विछोह में सौरभ दुःख में डूब गया ! दिशा की ओर से भी वह लापरवाह रहने लगा ! नन्ही दिशा सनाथ होते हुए भी एक बार फिर अनाथ हो गयी !
मौके का फ़ायदा उठा सौरभ के ऑफिस की एक सहकर्मी वन्दना सहानुभूति और संवेदना के पांसे चलते हुए सौरभ के दिल में घर बनाने लगी ! हर ओर से बिखरे सौरभ को वन्दना का साथ अच्छा लगने लगा ! और एक दिन उसने वन्दना के सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिया ! वन्दना ने हाँ कहने में पल भर की भी देर न लगाई ! उसके सामने रईस खानदान के इकलौते वारिस का प्रस्ताव आया था जिसके पास इंदौर और जबलपुर में अकूत संपत्ति थी ! दिशा से पीछा छुड़ाने का हल उसके पास था कि वह उसे होस्टल भेज देगी और उसने यही शर्त सौरभ के सामने भी रखी थी जिसे सौरभ ने तुरंत स्वीकार कर लिया ! सौरभ ने अपने माता-पिता को बुला कर वन्दना के साथ विवाह करने की अपनी इच्छा व्यक्त कर दी ! न चाहते हुए भी सहमति देने के अलावा उनके पास कोई और विकल्प नहीं था !
आतंकित दिशा आज एक बार फिर अनाथ हुई जा रही थी ! इस बार अनाथाश्रम की जगह वह होस्टल भेजी जा रही थी नितांत अपरिचित एवं अनजान लोगों के बीच !
“नहीं दादी ! मुझे होस्टल नहीं जाना ! आप मुझे अपने साथ इंदौर ले चलिए ! मैं आपकी हर बात मानूँगी ! आपको बिलकुल तंग नहीं करूंगी ! प्लीज़ प्लीज़ दादी ! मैं होस्टल नहीं जाउंगी ! मम्मा क्यों चली गयीं भगवान के पास ! मुझे कोई प्यार नहीं करता !” दिशा बिलख रही थी और निरुपाय दादी उसे किसी भी तरह से चुप नहीं करा पा रहीं थीं !
विवाहोपरांत दस वर्ष की लंबी अवधि तक भी जब तमाम दवा इलाज के बाद उनकी बहू वत्सला की गोद हरी न हुई तो तीन माह की नन्ही दिशा को शहर के अनाथाश्रम से उनके बेटे सौरभ और वत्सला ने गोद ले लिया ! घर का हर सदस्य दिशा पर जान छिडकता और वत्सला की तो जान ही जैसे दिशा में बसती थी ! बाबा दादी भी दिशा के मोह से बधे हर दूसरे तीसरे महीने इंदौर से जबलपुर आ जाते ! एक अनाथ बच्ची का जीवन संवर गया और सूने घर में नवागत की किलकारियां गूँज उठीं ! ईश्वर की इस असीम अनुकम्पा पर सब नतशिर होकर कृतज्ञ थे !
सब कुछ अच्छी तरह से चल रहा था ! दिशा छ: वर्ष की हो गयी थी ! तभी उसके जीवन में जैसे भूचाल आ गया ! वत्सला को ब्लड कैंसर हो गया और वह नन्ही दिशा को बिलखता छोड़ भगवान के पास चली गयी ! पत्नी के विछोह में सौरभ दुःख में डूब गया ! दिशा की ओर से भी वह लापरवाह रहने लगा ! नन्ही दिशा सनाथ होते हुए भी एक बार फिर अनाथ हो गयी !
मौके का फ़ायदा उठा सौरभ के ऑफिस की एक सहकर्मी वन्दना सहानुभूति और संवेदना के पांसे चलते हुए सौरभ के दिल में घर बनाने लगी ! हर ओर से बिखरे सौरभ को वन्दना का साथ अच्छा लगने लगा ! और एक दिन उसने वन्दना के सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिया ! वन्दना ने हाँ कहने में पल भर की भी देर न लगाई ! उसके सामने रईस खानदान के इकलौते वारिस का प्रस्ताव आया था जिसके पास इंदौर और जबलपुर में अकूत संपत्ति थी ! दिशा से पीछा छुड़ाने का हल उसके पास था कि वह उसे होस्टल भेज देगी और उसने यही शर्त सौरभ के सामने भी रखी थी जिसे सौरभ ने तुरंत स्वीकार कर लिया ! सौरभ ने अपने माता-पिता को बुला कर वन्दना के साथ विवाह करने की अपनी इच्छा व्यक्त कर दी ! न चाहते हुए भी सहमति देने के अलावा उनके पास कोई और विकल्प नहीं था !
आतंकित दिशा आज एक बार फिर अनाथ हुई जा रही थी ! इस बार अनाथाश्रम की जगह वह होस्टल भेजी जा रही थी नितांत अपरिचित एवं अनजान लोगों के बीच !
साधना वैद