हमारे पड़ोसी शर्मा
जी और उनकी पत्नी से आपका परिचय मैं पहले करवा चुकी हूँ ! हमारी कॉलोनी के सबसे
दिलचस्प और लोकप्रिय दम्पत्ति होने का खिताब उन्हें ही हासिल है ! अक्सर ही उनके
यहाँ कोई न कोई शगूफा छिड़ जाता और सारी कॉलोनी में कुछ दिन के लिए खूब हलचल मची
रहती और सबका खूब मनोरंजन होता ! फिर कुछ समय के बाद गैस के गुब्बारे की तरह उसकी हवा
निकल जाती और मामला ठंडा हो जाता ! लेकिन हम सब जानते थे कि यह शान्ति अधिक दिनों
तक ठहरने वाली नहीं होती थी ! शर्माइन को कोई न कोई नयी उचंग सूझती रहती और उसका
भुगतान बेचारे शर्मा जी को करना पड़ता !
तो हुआ यूँ कि इस
बार शर्माइन को कुत्ता पालने का जुनून चढ़ा ! उनके यहाँ काम करने वाली महरी कमला की
बस्ती में कुछ नये पिल्लों ने संसार में आँखें खोलीं ! कुछ दिनों में माँ का दूध
पीकर हृष्ट पुष्ट पिल्ले बस्ती में हर जगह धमा चौकड़ी मचाने लगे ! छोटे-छोटे
खिलौनों से चंचल पिल्ले सबका मन लुभाते ! कमला रोज़ आकर उनकी शरारतों के विस्तृत किस्से
शर्माइन को सुनाती ! नतीजतन शर्माइन की भी ललक जागृत हो गयी उनको देखने की !
शर्माइन की फरमाइश पर एक दिन कमला अपने साथ एक गोल मटोल से भूरे पिल्ले को गोदी
में उठा कर उनके यहाँ ले आई !
शर्माइन का फोन आया
हमारे पास, “दीदी, जल्दी से आइये ! हमने कुत्ता मँगवाया है ! आप देखिये कैसा है !
हम इसे पालें या नहीं ? और ज़रा अपने डॉगी का कटोरा भी लेती आइयेगा !”
शर्माइन का फोन आया
तो हमें तो जाना ही था ! अपने स्वर्गवासी प्यारे टॉमी का खाने का कटोरा भी हम साथ
ले गए ! हमें देखते ही पिल्ला हमारे पैरों के पास आ अपना बदन रगड़ने लगा ! शर्माइन
विभोर हो गयीं, “देखिये न दीदी ! कितने मैनर्स वाला कुत्ता है ! आपके पैर छू रहा
है ! हमें तो बड़ा पसंद आया है ! कमला इसे यहीं छोड़ जाना ! अब ये हमारा हो गया !
हमने तो इसका नाम भी सोच लिया है ! हम इसे ब्राउनी बुलाया करेंगे ! अच्छा नाम है
ना दीदी ?”
शर्माइन की खुशी और
उत्साह देखने लायक था ! ऐसे में उनसे कैसे कहते कि यह अति साधारण स्ट्रीट डॉग है
और बड़े होने के बाद इसकी शक्ल और अक्ल दोनों ही कहीं उन्हें निराश ना कर दें !
लेकिन हम उनकी खुशी पर पानी के छींटे मारना नहीं चाहते थे सो चुपचाप उनका अनुमोदन
कर घर लौट आये ! शर्माइन की ज़रूरत के अनुसार हमारे टॉमी की बास्केट, गले का कॉलर,
चेन, गद्दी, रजाई, कोट सब एक-एक कर वक्त और मौसम की माँग के अनुसार शर्माइन के
यहाँ पहुँच गए ! शर्माइन अक्सर उसे गोदी में उठाये रहतीं और उसे ‘शेक हैंड’, ‘सिट
डाउन,’ स्टैंड अप’ आदि छोटे-छोटे कमांड सिखलाने की कोशिश करतीं ! लेकिन जैसी हमें
आशंका थी ब्राउनी ने कुछ भी नहीं सीखा ना ही शर्माइन का कोई कहना ही कभी माना !
शुरू में तो सब कुछ
ठीक ठाक चला लेकिन ब्राउनी की आदतों को लेकर अब शर्माइन का मूड कुछ खराब रहने लगा
! अब वह बड़ा हो गया था ! उसकी भूख भी बढ़ गयी थी ! वह या तो सोता रहता या बेवजह
भौंकता रहता ! शर्माइन और शर्मा जी का आराम हराम हो गया था ! शर्माइन का सिरदर्द
इस बात से और बढ़ गया था कि ब्राउनी जगह-जगह घर में गंदा कर देता और वक्त बेवक्त
शर्माइन को सफाई करनी पड़ती ! जैसी कल्पना शर्माइन की थी वैसी एक इशारे पर बात
मानने वाले होशियार, इंटेलीजेंट और स्मार्ट पुलिस डॉग जैसी कोई भी बात ब्राउनी में
नहीं थी !
क्योंकि हमारे पास
टॉमी तेरह साल तक रहा था और कॉलोनी में उसकी छवि एक बड़े ही ट्रेंड और अनुशासित
कुत्ते की थी इसलिए इस मामले में शर्माइन हमें विशेषज्ञ मानती थीं ! ब्राउनी की
हरकतों से परेशान शर्माइन ने एक दिन हमें फिर बुलवाया, “आप ही बताइये दीदी ! कैसे
सिखाएं इसे ! यह ना तो कुछ समझता है ना ही
कुछ सीखता है ! शेक हैंड करना सिखाते हैं तो हमारा हाथ काटने लगता है ! अखबार उठा
कर लाना सिखाने लगे तो अखबार चिंदी-चिंदी कर डाला ! अखबार की दशा देख साहब गुस्सा
हुए सो अलग ! बस सारा दिन खाता है और चाहे जहाँ गंदा कर देता है ! यह तो बड़ी
मुश्किल है ! बाकी सब काम तो कर सकते हैं लेकिन यह हमसे नहीं होगा ! इसकी ट्रेनिंग
इसे कैसे दें ?”
‘अरे तो इसे बाहर
घूमने के लिए क्यों नहीं भेजतीं ? एक ही जगह बँधा रहेगा तो वह भी क्या करेगा ! तुम
देखती नहीं हो कॉलोनी में वर्मा जी, भल्ला जी, तिवारी जी सभी अपने कुत्तों को सुबह
शाम वॉक पर ले जाते हैं ! उनकी भी एक्सरसाइज़ हो जाती है और कुत्तों की भी आउटिंग
हो जाती है ! तुम भी इसे कुछ देर के लिए बाहर टहलने भेज दिया करो !’
शर्माइन को हमारी
बात जँच गयी ! लेकिन सारी मुसीबत बेचारे शर्मा जी की आ जायेगी यह हमने कहाँ सोचा
था ! अब तो रोज़ सुबह शाम शर्माइन की तेज़ रौबीली आवाज़ हमारे कानों में पड़ने लगी,
‘अजी अखबार ही पढ़ते रहेंगे क्या ? जाइए ज़रा ब्राउनी को बाहर घुमा लाइए !’
कुत्तों को सख्त
नापसंद करने वाले शर्मा जी पर आफत का पहाड़ टूट गया, “मैं कैसे ले जाउँगा ! मेरा तो
कहना भी नहीं मानता ! यह मुझसे नहीं होगा ! तुम खुद क्यों नहीं ले जातीं उसे ?”
“कैसी बातें कर रहे
हो जी ! मैं सड़क पर उसे घुमाती अच्छी लगूँगी क्या ? वर्मा जी, भल्ला जी, तिवारी जी
सभी तो ले जाते हैं अपने कुत्तों को तो आप क्यों नहीं ले जा सकते ? जाइए जल्दी से
! जाना तो आपको ही पड़ेगा !”
शर्मा जी ने
मिमियाते हुए एक और नाकाम सी कोशिश की, “तुम कमला से कह देना वह ले जायेगी !”
“और घर का काम ?
चौका बर्तन, झाडू पोंछा कौन करेगा ? वह या तो ब्राउनी को ही घुमा लायेगी या घर का
काम ही कर पायेगी !”
शर्माइन की तीखी
वाणी ने शर्मा जी को निरुत्तर कर दिया ! मरता क्या न करता ! झख मार के ब्राउनी की
चेन थामी और गेट खोल कर सड़क पर आ गए !
ब्राउनी ने मुद्दत
के बाद बाहर की दुनिया देखी थी ! सड़क पर एक अनुशासित, संभ्रांत पालतू कुत्ते की
तरह नफासत से टहलने के शऊर से वह ज़रा भी वाकिफ नहीं था ! सड़क के इधर उधर जो कुछ भी
उसे आकर्षित करता वह उसी ओर दौड़ पड़ता ! कभी किसी कार के नीचे छिपी बिल्ली तो कभी
दीवार के किनारे सरपट भागता चूहा या गिलहरी, कभी किसीकी फेंकी रोटी या ब्रेड का टुकड़ा तो कभी
कूड़े के ढेर में पड़े अण्डे या फलों के छिलके ! सभी ब्राउनी के लिए विशेष दिलचस्पी की
वस्तुएँ थीं जिन्हें देखते ही वह उन पर झपटने की कोशिश करता ! उसकी इस कोशिश में शर्मा
जी बेचारे उसके पीछे-पीछे झटके खाते हुए एक तरह से दौड़ सी ही लगाते नज़र आते ! कई
बार तो वे गिरते-गिरते बचे ! उन दोनों को देख कर यह कहना मुश्किल होता कि शर्मा जी
कुत्ते को घुमाने लाये हैं या कुत्ता शर्मा जी को ! शर्मा जी की खीझ और असंतोष रोज़
शर्माइन पर निकलता लेकिन वे भी धुन की पक्की थीं ! नतीजतन शर्मा जी को इस मुसीबत
से निजात नहीं मिलनी थी सो नहीं मिली और ब्राउनी को घुमाने का यह सिलसिला बदस्तूर
ऐसे ही चलता रहा !
लेकिन जैसा कि हर
नाटक का पर्दा गिरता ही है एक दिन इस ड्रामे का भी पटाक्षेप हो गया ! उस दिन भी
शर्मा जी रोज़ की तरह ब्राउनी को घुमाने के लिए सुबह-सुबह निकले थे ! फिर हुआ यूँ
कि एक घर के सामने ब्राउनी को दो तीन रोटियाँ पड़ी हुई दिखाई दे गयीं ! आदतन वह उन
पर लपका ! लेकिन इन रोटियों पर कॉलोनी के ही दादा किस्म के किसी और कुत्ते की नज़र भी थी ! जैसे ही ब्राउनी ने रोटी को मुँह लगाया वैसे ही वह अपने माल की रक्षा के लिए
गुर्राता हुआ आगे बढ़ा ! ब्राउनी ठिठक कर दो कदम पीछे हो लिया ! आतंकित हो शर्मा जी
ने ब्राउनी की चेन को हाथ में लपेट कर और छोटा कर लिया ! दोनों कुत्ते गुर्रा के
एक दूसरे का बल परख रहे थे ! संभ्रांत कुत्ते के तौर तरीके भले ही ब्राउनी ने न
सीखे हों लेकिन कोठी में रहने का गुरूर ज़रूर उसमें आ गया था ! यहाँ बात प्रतिष्ठा
की आ गयी थी ! बीच-बीच में कुछ रिरियाते हुए भी वह अपना दावा उन रोटियों पर नहीं
छोड़ना चाहता था ! ब्राउनी का गुस्सा खोखला था जबकि ऐसे मामलों में सामने वाले
कुत्ते का अनुभव और अभ्यास ज़बरदस्त था ! भौंकने की आवाज़ सुन कर दो तीन कुत्ते और आ
गए ! शर्मा जी के हाथ पैर फूल गए ! उन्होंने ब्राउनी की चेन को और ज़ोर से अपनी ओर
खींचा और दूसरे कुत्तों को डाट कर भगाने लगे ! शर्मा जी का सहयोग पा ब्राउनी की
हिम्मत बढ़ गयी और वह फिर रोटियों की ओर लपका ! सामने वाले कुत्तों को ब्राउनी की
हरकत सख्त नागवार गुज़री और तीनों ने ब्राउनी के कॉलर, कोट, पट्टे का लिहाज़ किये
बिना एक साथ उस पर हमला बोल दिया ! ब्राउनी पटकनी खाकर चारों खाने चित्त हो गया और
साथ ही ज़ोर का झटका लगने से शर्मा जी भी मुँह के बल ज़मीन पर गिर गए ! उनका माथा,
कोहनी और घुटने छिल गए और हथेली से खून बह निकला ! राह चलते लोगों ने पत्थर मार कर
कुत्तों को भगाया और घायल शर्मा जी और ब्राउनी को उनके घर पहुँचाया !
साहब की यह दुर्गति
देख शर्माइन के क्रोध और क्षोभ का पारावार न था ! ब्राउनी के लिए उनका सारा प्यार दुलार एकदम से तिरोहित हो गया और उससे किसी भी तरह जान छुड़ाने का पक्का इरादा उन्होंने अपने मन
में कर लिया ! शर्माइन का माली कई दिनों से गाँव में अपने खेतों की रखवाली के लिए
एक कुत्ता पालने की बात कर रहा था ! इससे अच्छा मौक़ा भला और क्या मिलता ! शर्माइन
ने उसी दिन ब्राउनी को अपने माली को दे दिया जिसे वह खुशी-खुशी अपने साथ गाँव ले
गया और इस तरह से शर्मा जी को ब्राउनी नाम की उस मुसीबत से छुटकारा मिल गया !
साधना वैद
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