देखा तुमने
तुमने तो अपने तरकश से
केवल एक ही तीर फेंका था
लेकिन उस एक तीर ने
असुरक्षा और आतंक की
कैसी ज़मीन
तैयार कर दी है ।
अब देखो आत्मरक्षा के लिए
सबके हाथों में कितने पैने
और नुकीले तीर सज गए हैं ।
चेहरे पर भय है,
वाणी में ज़हर उतर आया है ,
आँखों में नफ़रत है और
हृदय में बदले की आग
इतनी तीव्रता से धधक उठी है कि
प्रतिघात करने में
ज़रा भी देर नहीं लगती ।
हल्की सी सरसराहट से भी
चौकन्ने हो सब तुरंत ही
अपने अस्त्र शस्त्रों से लैस हो जाते हैं
और मोर्चा सम्हाल लेते हैं ।
फिर एक पल भी यह सोचने में
गँवाये बिना कि आगंतुक
दोस्त है या दुश्मन
अपनी पूरी ताक़त से उस पर
टूट पड़ते हैं ।
काश तुमने उस वक्त
तीर की जगह एक फूल
फेंका होता तो तुम्हारे चारों ऒर
खूबसूरत और सुगन्धित फूलों से सजा
एक मधुबन खिल उठा होता ।
लोगों के चेहरे पर मुस्कान होती,
वाणी से अमृत छलकता,
आँखों में प्यार होता और
अंतस्तल में आत्मीयता का
सागर हिलोरें ले रहा होता ।
काश .............
साधना वैद
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