मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । समाज है तो परिवार है, परिवार है तो रिश्ते हैं, रिश्ते हैं तो हर रिश्ते की एक मर्यादा है एक ज़रुरत है । परिवार में हर सदस्य का एक सुनिश्चित स्थान है और अपने स्थान के अनुरूप वह हर दूसरे रिश्ते से मान सम्मान, प्यार दुलार पाने व देने का अधिकारी है ।
जब तक जीवन है इंसान इन रिश्तों से बँधा है । साथ ही इन रिश्तों से जुड़ी ज़िम्मेदारियों से भी बँधा है । जैसे जन्म से जुड़े रिश्ते कभी ख़त्म नहीं होते उनसे जुड़ी ज़िम्मेदारियाँ भी कभी ख़त्म नहीं होतीं । जीवन को सफलतापूर्वक और सुख पूर्वक जीना है तो इन ज़िम्मेदारियों को निभाते हुए और इन रिश्तों को यथोचित सम्मान देते हुए ही जीना होगा ।
ऐसा तो कभी हो ही नहीं सकता कि आपके पास ज़िम्मेदारियाँ सिफर हो जाएं । इंसान एक ही जीवन में अनेक रिश्तों से जुड़ी अनेक भूमिकाएं निभाता है । किसी एक भूमिका का अंत हो सकता है लेकिन दूसरी भूमिका से जुड़े दायित्व सदैव सामने रहेंगे । यह आपकी सोच और परिपक्वता पर निर्भर करता है कि आप किस रिश्ते और किस भूमिका को अधिक महत्त्व देते हैं और किस रिश्ते को बोझ समझ कर उतार फेंकना चाहते हैं ।
परिवार में जन्म के साथ ही व्यक्ति पुत्र की भूमिका में आ जाता है । इसके साथ ही जीवन के इस सफर में वह भाई, पति व पिता की भूमिका का निर्वाह भी करता है । सारे जीवन इन विभिन्न रूपों को जीना निभाना और हर रिश्ते की कसौटी पर खरा उतरना बहुत ही चुनौती भरा कार्य है इसमें कोई दो राय नहीं हैं । अक्सर किसी एक भूमिका के निर्वाह में ज़रा सी भी कमी आ जाने से कटु आलोचना और घोर मानसिक अनुताप भी झेलना पड़ सकता है । यह समय ही परीक्षा का समय होता है जिसमें आपको विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण होना आवश्यक हो जाता है । आपकी व्यवहार कुशलता, सूझ बूझ और समझदारी का यहाँ कडा इम्तहान ले लिया जाता है । पास या फेल होना आपके हाथ में है ।
रिश्तों का निर्वाह करते समय आपको यह नहीं भूलना चाहिए कि आज आप जिस स्थान पर दुविधाग्रस्त खड़े हैं कल आपके बच्चे भी उसी जगह पर खड़े होँगे क्योंकि वृद्धावस्था के आगमन के साथ आप उस स्थान पर होंगे जहां आज आपके माता पिता हैं ।
यह सत्य है कि नए रिश्तों में बंधने के साथ ही पुराने रिश्तों की चमक फीकी पड़ने लगती है और उनका गौण हो जाना लाज़िमी हो जाता है लेकिन उनका महत्त्व और उपयोगिता समाप्त हो चुकी है ऐसा समझने की भूल कदापि नहीं करनी चाहिए । जीवन में किसी व्यक्ति की ज़रुरत भले ही शून्य हो जाये उससे जुड़ी भावनायें, प्रेम और आत्मीयता की प्रतीति कभी कम नहीं हो सकती ।
हर रिश्ते और हर भूमिका का जीवन में सामान रूप से महत्त्व होता है । होना तो यह चाहिए कि किसी भी भूमिका के निर्वाह में किसी भी अन्य रिश्ते का निरादर और अवमानना न हो । ना ही कोई व्यक्ति स्वयं को उपेक्षित, प्रताड़ित या अपमानित अनुभव करे । कहने सुनने में यह मुश्किल ज़रूर लगता है लेकिन असंभव तो बिलकुल भी नहीं । बस हर रिश्ते को पूरी ईमानदारी से निभाने की दृढ इच्छाशक्ति होनी चाहिए । रिश्तों को निभाने की प्रतिबद्धता का जज़्बा किसी एक में ही नहीं परिवार के हर सदस्य में होना चाहिए तब ही रिश्तों की गरिमा को संजोया जा सकता है ।
जब तक जीवन है इंसान इन रिश्तों से बँधा है । साथ ही इन रिश्तों से जुड़ी ज़िम्मेदारियों से भी बँधा है । जैसे जन्म से जुड़े रिश्ते कभी ख़त्म नहीं होते उनसे जुड़ी ज़िम्मेदारियाँ भी कभी ख़त्म नहीं होतीं । जीवन को सफलतापूर्वक और सुख पूर्वक जीना है तो इन ज़िम्मेदारियों को निभाते हुए और इन रिश्तों को यथोचित सम्मान देते हुए ही जीना होगा ।
ऐसा तो कभी हो ही नहीं सकता कि आपके पास ज़िम्मेदारियाँ सिफर हो जाएं । इंसान एक ही जीवन में अनेक रिश्तों से जुड़ी अनेक भूमिकाएं निभाता है । किसी एक भूमिका का अंत हो सकता है लेकिन दूसरी भूमिका से जुड़े दायित्व सदैव सामने रहेंगे । यह आपकी सोच और परिपक्वता पर निर्भर करता है कि आप किस रिश्ते और किस भूमिका को अधिक महत्त्व देते हैं और किस रिश्ते को बोझ समझ कर उतार फेंकना चाहते हैं ।
परिवार में जन्म के साथ ही व्यक्ति पुत्र की भूमिका में आ जाता है । इसके साथ ही जीवन के इस सफर में वह भाई, पति व पिता की भूमिका का निर्वाह भी करता है । सारे जीवन इन विभिन्न रूपों को जीना निभाना और हर रिश्ते की कसौटी पर खरा उतरना बहुत ही चुनौती भरा कार्य है इसमें कोई दो राय नहीं हैं । अक्सर किसी एक भूमिका के निर्वाह में ज़रा सी भी कमी आ जाने से कटु आलोचना और घोर मानसिक अनुताप भी झेलना पड़ सकता है । यह समय ही परीक्षा का समय होता है जिसमें आपको विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण होना आवश्यक हो जाता है । आपकी व्यवहार कुशलता, सूझ बूझ और समझदारी का यहाँ कडा इम्तहान ले लिया जाता है । पास या फेल होना आपके हाथ में है ।
रिश्तों का निर्वाह करते समय आपको यह नहीं भूलना चाहिए कि आज आप जिस स्थान पर दुविधाग्रस्त खड़े हैं कल आपके बच्चे भी उसी जगह पर खड़े होँगे क्योंकि वृद्धावस्था के आगमन के साथ आप उस स्थान पर होंगे जहां आज आपके माता पिता हैं ।
यह सत्य है कि नए रिश्तों में बंधने के साथ ही पुराने रिश्तों की चमक फीकी पड़ने लगती है और उनका गौण हो जाना लाज़िमी हो जाता है लेकिन उनका महत्त्व और उपयोगिता समाप्त हो चुकी है ऐसा समझने की भूल कदापि नहीं करनी चाहिए । जीवन में किसी व्यक्ति की ज़रुरत भले ही शून्य हो जाये उससे जुड़ी भावनायें, प्रेम और आत्मीयता की प्रतीति कभी कम नहीं हो सकती ।
हर रिश्ते और हर भूमिका का जीवन में सामान रूप से महत्त्व होता है । होना तो यह चाहिए कि किसी भी भूमिका के निर्वाह में किसी भी अन्य रिश्ते का निरादर और अवमानना न हो । ना ही कोई व्यक्ति स्वयं को उपेक्षित, प्रताड़ित या अपमानित अनुभव करे । कहने सुनने में यह मुश्किल ज़रूर लगता है लेकिन असंभव तो बिलकुल भी नहीं । बस हर रिश्ते को पूरी ईमानदारी से निभाने की दृढ इच्छाशक्ति होनी चाहिए । रिश्तों को निभाने की प्रतिबद्धता का जज़्बा किसी एक में ही नहीं परिवार के हर सदस्य में होना चाहिए तब ही रिश्तों की गरिमा को संजोया जा सकता है ।
साधना वैद
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