जीतनी
तो थी जीवन की जंग
तैयारियाँ भी बहुत
की थीं इसके लिए
कितनी तलवारें
भांजीं
कितने हथियारों पर
सान चढ़ाई
कितने तीर पैने किये
कितने चाकुओं पर धार
लगाई
लेकिन एक दिन सब
निष्फल हो गया
जीवन के इस मुकाम पर
आकर
इतनी ताकत ही कहाँ
रही हाथों में
कि कोई भी अस्त्र
उठा सकूँ ।
कभी सुना था कि जीवन
की जंग
अस्त्र शस्त्रों से
नहीं
खूबसूरत सुरभित
फूलों से
जीती जाती है ।
युद्ध की गगनभेदी
रणभेरी से नहीं
सुमधुर स्वर्गिक
दिव्य संगीत से
जीती जाती है ।
नहीं जानती इस जंग
का
क्या हश्र होगा
लेकिन
यह तय है कि अब ये
हाथ
इतने अशक्त हो उठे
हैं कि
इनसे एक फूल भी
पकड़ना
नामुमकिन हो गया है
।
और कानों में दिव्य
स्वर्गिक
जीवन संगीत के स्थान
पर
सिर्फ और सिर्फ
तलवारों की
खनखनाहट ही गूँजती
रहती है ।
कोई तो बताये मैं
क्या करूँ ।
साधना
वैद
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