रक्षा
बंधन का त्यौहार है
हर बहन का
अपने भाई पर
अटूट विश्वास
और
अकथनीय
प्यार है !
आरती का
थाल सजा
भैया की
कलाई पर
अरमान
भरी राखी बाँधने का
उसे
जाने कब से इंतज़ार है !
लेकिन
वर्षों की यह पुनीत परम्परा
इस बहना
के घर में अब
टूटती
दिखाई देती है
अपने दुलारे
भैया के लिए
इसके
दिल में घोर अविश्वास
और
आँखों में नफरत
साफ़ दिखाई
देती है !
ज़मानत
पर छूटे अपने भाई से
उसने
साफ़ लफ़्ज़ों में
रक्षा
बंधन पर अपने घर
न आने
की ताकीद कर दी है,
ससुराल
में सबके सामने
किस
मुँह से वह अपने ऐसे
दुष्कर्मी
भाई की कलाई पर
रक्षा सूत्र
बाँधेगी जो उसकी
रक्षा
का तो दम भरता है
किन्तु किसी
अन्य लड़की पर
दरिन्दे
की तरह टूट पड़ता है
इस
शर्मिन्दगी से बचने के लिए
अपने इकलौते
भाई को उसने
नज़रों से
दूर रहने की
हिदायत कर
दी है !
कैसे करेगी
वह सामना सबकी
सवाली
निगाहों का –
“अच्छा
! यही हैं आपके भैया
जिन पर
केस चल रहा है ?
चिंता न
करें आप
वकील
बहुत बढ़िया है
बिलकुल
बेदाग़ छुड़ा लाएगा ”
लेकिन
क्या सच में
वह भी ऐसा
ही चाहती है ?
हरगिज़ नहीं
!
जो इंसान
किसी स्त्री का
सम्मान
नहीं कर सकता
जो किसी
ग़ैर स्त्री को अकेली
और
असुरक्षित पा उसको
बेईज्ज़त
कर सकता है
वह किस
मुँह से
मेरी
रक्षा का दम भरता है
वह कैसे
मेरा भाई हो सकता है
ऐसे
दरिन्दे को तो समाज में
सबके
साथ मिल कर जीने का
हक़ ही
नहीं होना चाहिए
बाकी का
सारा जीवन इसका
जेल की
सलाखों के अन्दर
पश्चाताप
की आग में
जलते
हुए ही बीतना चाहिए !
एक नारी
होने के नाते
मेरी न्याय
व्यवस्था से
यही गुज़ारिश
है कि
ऐसे
खतरनाक मुजरिम को,
जो
बदकिस्मती से मेरा भाई है,
कड़ी से
कड़ी सज़ा मिले
ताकि हर
उस पीड़िता को
जो इस दुर्दम्य
वेदना से गुज़री है
कुछ तो
इन्साफ मिले !
कोई बात
नहीं भैया
आइन्दा
यह राखी अब
कान्हा जी
के हाथों में ही बँधेगी
वो मेरी
रक्षा के लिए
आयें या
न आयें
लेकिन तुम
अब कभी भी
किसी भी
रक्षा बंधन पर
मेरे घर
न आना !
साधना
वैद
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