किसी भी
दिन का, किसी भी प्रदेश का, किसी भी शहर का समाचार पत्र उठा लीजिये ! बलात्कार,
दुष्कर्म, हिंसा और ह्त्या की घिनौनी वारदातों से अखबार रँगे रहते हैं ! इस तरह की
घटिया गतिविधियों में समाज के हर वर्ग के लोग संलिप्त पाए जाते हैं ! जो बड़े हाई
प्रोफाइल लोग होते हैं, नेताओं, अभिनेताओं, उद्योगपतियों या मंत्रियों की श्रेणी
के, अक्सर तो उनकी करतूतें उजागर ही नहीं हो पातीं और अगर पीड़िता के ‘दुस्साहस’ की
वजह से कभी प्रकाश में आ भी गयीं तो परिवार, प्रशासन, मीडिया, और सारी मशीनरी रुतबा,
रसूख और ओहदे का दुरुपयोग कर धन दौलत को पानी की तरह बहा एड़ी चोटी का ज़ोर लगा देते
हैं और बात को दबाने में और सबूतों को मिटाने में लग जाते हैं !
मध्यम वर्ग या निम्न वर्ग के लोग ही अक्सर पकड़ाई में आ जाते हैं तो वे भी हमारी न्याय व्यवस्था की कछुआ चाल और लचर कानूनों का फ़ायदा उठा वर्षों क़ानून की गिरफ्त से बाहर रह मौज की ज़िंदगी बसर करते रहते हैं और इसी तरह की असामाजिक गतिविधियों को अंजाम देते रहते हैं ! जिन्हें निचली अदालतों से सज़ा मिल जाती है वे उच्च न्यायालय में अपील करने के अधिकार का फ़ायदा उठा फिर कई सालों के लिए स्वतंत्र हो जाते हैं और नासूर बन अपने आस पास के वातावरण और परिवेश को प्रदूषित करते रहते हैं ! इन बातों से समाज में ग़लत सन्देश जाते हैं और इसी वजह से ऐसे कुत्सित विचारों के लोगों के मन में किसी किस्म का न तो भय रहता है ना ही इस प्रकार की घटनाओं में कमी आ पाती है !
अब सवाल
यह उठता है कि कौन सा तरीका अपनाया जाए कि ऐसे लोगों की अंतरात्मा जागे और ये किसी
तरह सद्मार्ग पर चलने के लिए तैयार हो सकें ! मुझे तो इस समस्या का एक ही निराकरण
कारगर दिखाई देता है कि ऐसे लोगों की प्राणवायु की आपूर्ति बंद कर दी जानी चाहिए !
इस तरह की मानसिकता के लोगों की प्राणवायु है इनका परिवार ! जो हर हाल में इनके
लिए ढाल बन कर खडा हो जाता है ! इनके कुकर्मों को छिपाने के लिए बड़ी से बड़ी
कुर्बानी देने को और अपने बैंक बेलेंस को निचोड़ कर सड़क पर आ खड़े होने से भी पीछे
नहीं हटता ताकि समाज में दुश्चरित्र बेटे के बरी हो जाने से उनकी झूठी शान बनी रहे
! लेकिन मेरे विचार से यह ग़लत है ! आज की दुनिया में लोग इतने आत्मकेंद्रित हो गए
हैं कि बाहर के लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं क्या कहते हैं उन्हें कोई फर्क
नहीं पड़ता ! “कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना” गीत को दोहरा कर वे अपने
अपराधी चहरे पर सज्जन और शरीफ इंसान का मुखौटा चढ़ाए घुमते रहते हैं ! लेकिन जब ऐसे
दुश्चरित्र लोगों की भर्त्सना और बहिष्कार उनके अपने घर परिवार के लोग करेंगे और
उन्हें परिवार के सदस्य के रूप में अमान्य कर उनके सारे अधिकार उनसे छीन लेंगे तभी
कुछ सुधार होने की संभावना है !
समाज के लोग चाहे जितनी आलोचना करें घर के लोग ज़मीन आसमान एक कर उन्हें बचाने की कोशिश में लगे रहते हैं जिसकी वजह से ऐसी रुग्ण मानसिकता के लोगों के रवैये में कभी सुधार नहीं आता और यही वजह है कि इस तरह के अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं ! घर वालों का सहयोग और सपोर्ट मिल जाता है तो ऐसे दुश्चरित्र लोग शेर हो जाते हैं ! आस पड़ोस की या बाहर वालों की किसे चिंता होती है ! अपने देश की न्यायिक प्रक्रिया की कछुए जैसी चाल के बारे में तो सबको पता ही है ! सालों गुज़र जाते हैं और फैसले नहीं आते ! निर्भया के केस को ही ले लीजिये ! और मामलों की बनिस्बत इसे बहुत जल्दी निपटाया गया ! सज़ा भी घोषित कर दी गयी लेकिन अभी तक उसके अपराधी ज़िंदा हैं और इस समय भी उनकी तुच्छ और कुत्सित सोच ज़रूर किसी न किसी कुचक्र में ही लगी होगी कि कैसे फांसी के फंदे से बचा जाए ! समाज में वास्तविक बदलाव तभी आ पायेगा जब घर वाले ऐसे लोगों का परित्याग करेंगे और उन्हें दण्डित करेंगे ! जब घर वालों से ऐसे लोगों को तिरस्कार मिलेगा तो उनका रक्षा कवच टूट जाएगा और तब शायद उन्हें शर्मिन्दगी का अहसास हो ! ऐसा मेरा मानना है !
समाज के लोग चाहे जितनी आलोचना करें घर के लोग ज़मीन आसमान एक कर उन्हें बचाने की कोशिश में लगे रहते हैं जिसकी वजह से ऐसी रुग्ण मानसिकता के लोगों के रवैये में कभी सुधार नहीं आता और यही वजह है कि इस तरह के अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं ! घर वालों का सहयोग और सपोर्ट मिल जाता है तो ऐसे दुश्चरित्र लोग शेर हो जाते हैं ! आस पड़ोस की या बाहर वालों की किसे चिंता होती है ! अपने देश की न्यायिक प्रक्रिया की कछुए जैसी चाल के बारे में तो सबको पता ही है ! सालों गुज़र जाते हैं और फैसले नहीं आते ! निर्भया के केस को ही ले लीजिये ! और मामलों की बनिस्बत इसे बहुत जल्दी निपटाया गया ! सज़ा भी घोषित कर दी गयी लेकिन अभी तक उसके अपराधी ज़िंदा हैं और इस समय भी उनकी तुच्छ और कुत्सित सोच ज़रूर किसी न किसी कुचक्र में ही लगी होगी कि कैसे फांसी के फंदे से बचा जाए ! समाज में वास्तविक बदलाव तभी आ पायेगा जब घर वाले ऐसे लोगों का परित्याग करेंगे और उन्हें दण्डित करेंगे ! जब घर वालों से ऐसे लोगों को तिरस्कार मिलेगा तो उनका रक्षा कवच टूट जाएगा और तब शायद उन्हें शर्मिन्दगी का अहसास हो ! ऐसा मेरा मानना है !
इस
सन्दर्भ में मैंने दो कवितायें भी लिखी हैं जो फेसबुक और मेरे ब्लॉग ‘सुधीनामा’ पर
उपलब्ध हैं !
मेरे ब्लॉग की लिंक इस प्रकार है -
http://sudhinama.blogspot.in/
मेरे ब्लॉग की लिंक इस प्रकार है -
http://sudhinama.blogspot.in/
मेरी दोनों रचनाओं की लिंक नीचे दी है मैंने !
http://sudhinama.blogspot.in/2013/01/blog-post_18.html
http://sudhinama.blogspot.in/2017/08/blog-post.html
आपसे
अनुरोध है आप इन्हें भी अवश्य पढ़ें ! ऐसे दुश्चरित्र लोगों के माता पिता भी इसी
समाज का हिस्सा है ! उनका भी समाज के प्रति कुछ दायित्व है ! वे कैसे अपने कपूतों
को इस तरह बचाने की कोशिश कर सकते हैं ! उनकी अपनी परवरिश और शिक्षा पर भी सवाल
उठते हैं कि उन्होंने कैसे संस्कार दिए अपने बेटों को कि वे सबके लिए भय और आतंक
की वजह बन गए ! इस सन्दर्भ में नए क़ानून भी बनाने चाहिए ! पैतृक संपत्ति में उसका
उत्तराधिकार समाप्त कर दिया जाना चाहिए ! कहीं भी उसे नौकरी नहीं मिलनी चाहिए ! और
समाज के अन्य लोग ऐसे लोगों से सतर्क और सावधान रहें इसके लिए उनके फ़ोटोज़ सोशल
मीडिया पर अक्सर सार्वजनिक किये जाने चाहिए !
समाज
में व्याप्त इस गन्दगी को तभी हटाया जा सकेगा जब उनके अपने परिवार के लोग ऐसे
कुसंस्कारी और दुश्चरित्र लोगों का बहिष्कार करेंगे ! वरना तो बाहर के लोग क्या
कहते हैं इसकी चिंता किसे होती है ! माता पिता भाई बहनों का मुँह मोड़ लेना उन्हें
भावनात्मक रूप से तोड़ जाएगा और जब कहीं से भी आर्थिक और भावनात्मक सपोर्ट उन्हें
नहीं मिलेगा तो शायद उनके मन में सच्चे पश्चाताप के बीज अंकुरित हों और वास्तविक
सुधार की दिशा में उनके कदम अग्रसर हों ! ऐसा मेरा मानना है ! आपकी क्या राय है इस
विषय में यह भी जानना चाहती हूँ !
साधना
वैद
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