Thursday, June 14, 2018

प्रेम दीवानी सीपी



  
सीपी थी वह बहुत मानिनी
बड़ी अभिमानिनी
नहीं करती थी किसीको पसंद
सागर के अतल तल में
अपनी मर्जी से
अपने मन के मुताबिक़ 
वो रहती थी स्वच्छंद !
अक्सर एक नादान कंकड़
गलती से उससे टकरा जाता
उसके सुगढ़ बदन पर
अपनी खुरदुरी खाल से
खंरोंच लगा जाता !
सीप रुष्ट हो जाती
उसे लुढ़का कर दूर फेंक देती
लेकिन कंकड़ था बिंदास
वो कोई न कोई जतन करके
फिर आ जाता उसके पास !
सीप थी उससे बड़ी परेशान
पडी थी सोच में
कैसे बचाए उस शैतान से 
अपनी जान !   
एक दिन कुपित हो
सीप ने उसे निगल लिया
मन ही मन खुश थी
मैंने कंकड़ से उसकी शैतानी का
खूब बदला लिया !
कंकड़ था बेहद मगन
उसका मन बल्लियों उछला
उसकी मुराद पूरी हुई
अपनी प्यारी सीप के
दिल में रहने की
उसकी बरसों पुरानी
साध जो पूरी हुई !
कंकड़ को निगल कर सीप
मन ही मन पछता रही थी
वह ना तो उसे
अन्दर ही रख पा रही थी
ना उसे बाहर ही
निकाल पा रही थी !
कंकड़ अब तक तो उसके
बाहिरी सख्त आवरण को ही
खँरोचता था मगर
अब वो उसके नर्म नाज़ुक
अंतर को घायल
कर रहा था !
सीपी दुखी थी
उसका अंतर चीत्कार
कर रहा था
उसका कोमल बदन
खुरदुरे कंकड़ के
कटीले किनारों से
छिन्न भिन्न हो रहा था !
किस्मत ने उसे पाठ पढ़ाया
जिससे मुक्ति मिलना संभव न हो
उसे स्वीकार करो
अपना सर्वस्व उसे देकर
मन से अंगीकार करो !
अपनी शत्रुता
अपना बैर भाव भूल
सीप ने भी कंकड़ को
हृदय से लगाया
उसके चारों ओर अपने
अंतर का दिव्य स्त्राव लपेट
उसे एक सामान्य कुरूप कंकड़ से
अनुपम अपरूप
बहुमूल्य मोती बनाया !
तो यह थी कहानी
सीप और मोती के
नफ़रत और प्यार की
रोचक और सुहानी,
कैसे हो गयी एक
मगरूर और अभिमानी सीपी
नटखट और अल्हड कंकड़ की
प्रेम दीवानी !

साधना वैद 

  

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