कौन है बैरी
किसे माने वह अपना
बैरी
उस माँ को जिसने उसे
जीवन दिया
एक कच्ची मिट्टी के ढेर
को
आकार दे उसकी सुन्दर
मूरत गढ़ी
सद्शिक्षा और सद्संस्कार
दे
उसके व्यक्तित्व को
निखारा सँवारा
संसार के सारे सुख
और खुशियाँ दीं
और जीवन संगीत की
मधुर स्वर लहरी में
अपना सुर जोड़ उसे गाना
सिखाया !
या बैरी माने वह
अपने पिता को
जिन्होंने विद्यालयों
और महाविद्यालयों
की शिक्षा के साथ-साथ
उसे
सदा मर्यादा और अनुशासन
का
पाठ पढ़ाया और शिक्षित
बना दिया,
जीवन की कड़ी धूप में
घना साया बन
जिन्होंने सदा उसकी
रक्षा की
और कभी उसे
कुम्हलाने नहीं दिया !
फिर कहाँ कमी रह गयी
कि
हर प्रकार से सर्वगुण
संपन्न,
सक्षम, सुयोग्य,
सुशिक्षिता यह नारी
आज हारी हुई खड़ी है
कौन है उसका बैरी ?
क्या भाग्य ? या यह
समाज ?
या कुसंस्कारी हैवानों
की गंदी सोच
और घटिया मानसिकता ?
क्यों वह आज निर्भय
होकर
बाहर निकल नहीं सकती
?
क्यों वह ‘इंसानों’
की इस भीड़ में
स्वयं को सुरक्षित
नहीं पाती ?
क्यों ‘इंसानों’ की इस
भीड़ में उसे
कोई अपना दोस्त नहीं
मिलता ?
क्यों ‘इंसानों’ की इस
भीड़ में हर शख्स
उसे अपना बैरी दिखाई
देता है ?
कोई बताएगा
कहाँ क्या ग़लत है
और है तो वह क्यों
ग़लत है ?
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
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