शिक्षक दिवस पर विशिष्ट
गुरु गोविन्द
खड़े मेरे सामने
शीश उठाये
भ्रमित मन
सोच है भारी शीश
किसे नवाये
राह दिखाओ
हरो विपदा सारी
बाँँके बिहारी
किसको गहूँँ
असमंजस भारी
कृष्ण मुरारी
गुरु को बड़ा
बताया था जग ने
जानता हूँ मैं
गुरू का स्थान
है प्रभु से भी ऊँचा
मानता हूँ मैं
लेकिन है क्या
शिक्षक का दायित्व
जानते हैं वे ?
भोले बच्चों का
क्या खुद को सर्जक
मानते हैं वे ?
निर्दय होके
बच्चों पे हिंसा नहीं
गुरु का धर्म
देना सुशिक्षा
सँँवारना व्यक्तित्व
गुरू का कर्म
हुए शिक्षक
लक्ष्मी के उपासक
भूले कर्तव्य
छोड़ी कलम
भूले सरस्वती को
उठाया द्रव्य
हुए शिक्षक
लक्ष्मी के उपासक
भूले कर्तव्य
छोड़ी कलम
भूले सरस्वती को
उठाया द्रव्य
देना सम्मान
आदेश का पालन
छात्र का कर्म
गुरु की शिक्षा
धारना अंतर में
छात्र का धर्म
जीवन डोर
सौंप दी है तुमको
पार लगाना
दे के सुशिक्षा
संस्कार औ' करुणा
मान बढ़ाना
हर के तम
भर देना प्रकाश
सूर्य समान
गुरु पूर्णिमा
महत्वपूर्ण पर्व
आनंद स्रोत
मेरे श्रद्धेय
मेरे अभिभावक
तुम्हें प्रणाम
साधना वैद
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