जिस्म ने तय कर लिये कई फासले ,
उम्र भी है चढ़ चुकी सीढ़ी सभी ,
रूह उस लम्हे में लेकिन क़ैद है ,
जो न बीता था, न बीता है कभी !
जब हवाएं ठिठकती थीं द्वार पर ,
जब फुहारें भिगोती थीं आत्मा ,
जब सितारे चमकते थे नैन में ,
चाँद सूरज हाथ में थे जब सभी !
एक सूखा पात अटका है वहाँ ,
गुलमोहर के पेड़ की उस शाख पर ,
जो धधकता था सिंदूरी रंग में ,
अस्त होती सूर्य किरणों से कभी !
गीत अब भी गूँजता है अनसुना ,
भावना के पुष्प बिखरे हैं वहाँ ,
नेह की लौ जल रही है आज भी ,
जो बुझी थी, ना बुझेगी अब कभी !
थीं कभी तुमसे मिलीं सौगात में ,
मोह की उन श्रंखलाओं से बँधी ,
मैं खड़ी हूँ आज भी उस मोड़ पर ,
पलट कर तो देखते तुम भी कभी !
ज़िंदगी के तिक्त
सागर में समा ,
प्रेम की सरिता भी
खारी हो गयी ,
खो गयी रूमानियत
जाने कहाँ ,
कह सके ना चाह कर
तुमसे कभी !
अब कभी फिर लौट कर आ
जाओ तो
जी उठेंगे पल वो
रूमानी सभी
सो गये थे राह तक थक
हार के
विवश होकर गहन
निन्द्रा में कभी !
साधना वैद
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