Saturday, November 24, 2018

पन्नों में दबी एक रूमानी कहानी




पन्नों के बीच
सूखी सी पाँखुरियाँ
गीली सी यादें

 तुम्हारी बातें
जब आती हैं याद
जगातींं रातें 

भीगी सड़क
रिमझिम फुहार
हाथों में हाथ

जहाँ हों पास 
ज़मीन आसमान
जाना था साथ


तोड़ा गुलाब
अलकों में सजाया
मन हर्षाया 

सारे जग का
प्यार जैसे आँखों में
उतर आया

कितनी बातें
रूमानी कहानी में
कितने किस्से

प्रेम रंग में
तर ब तर हुए
सारे ही हिस्से

  उठाई गयीं   
ढेर सारी कसमें
ढेर से वादे

मन से सच्चे
समर्पित थे दोनों
वो सीधे सादे

बातों बातों में
जाने कब आ गयी
विदा की बेला

बिछड़ा साथी
नैनों से बह चला
आँसू का रेला

डूबा संसार
हुआ मन अकेला
छूटा जो हाथ

जी भर आया
धीमे से सहलाया
लाल गुलाब

 प्यारा तोहफा  
किताब में दबाया
पन्नों के बीच 

स्वप्न सरि में
विचरने लगी वो
नैनों को मींच

हुआ विछोह
अलग हुई राहें
फिर ना मिले

प्रेम के फूल
सूखी उस डाली पे
फिर ना खिले

व्यस्त हो गये
अपने संसार में
सदियाँ बीतीं

जीवन रीता
रीते सुबहो शाम
रातें थीं रीती

 बरसों बाद
मिली जो अचानक
वही किताब

भीगी पलकें
छुल गया हाथ से
सूखा गुलाब

कितना कुछ 
जो बीता मन पर
ध्यान आ गया 

विरहाग्नि में
पल-पल जलना
याद आ गया

याद आ गया 
प्रेम का उपहार 
लाल गुलाब 


छाई बदली
उमड़ा नयनों से
छिपा सैलाब



साधना वैद





7 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ८ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. इसे भेजने में कुछ विलम्ब हुआ लेकिन आपने फिर भी इसे आज के अंक में सम्मिलित कर लिया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! बहुत प्यार भरा अभिवादन !

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  3. वाह !बेहतरीन दी जी
    सादर

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  4. हमेशा की तरह लाजवाब सृजन...
    वाह!!!

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  5. हार्दिक धन्यवाद अनुराधा जी ! आभार आपका !

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  6. दिल से आभार आपका अनीता जी ! बहुत बहुत धन्यवाद !

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  7. आपकी प्रतिक्रिया प्रफुल्लित कर जाती है सुधा जी ! हृदय से आभार आपका !

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