भोर की बेला में खिले
सुरभित सुमनों के सुन्दर हार
शीश पर चढ़ाने के लिए
पावन निर्मल ओस का जल
चिरंतन प्रेम का जलता हुआ
शाश्वत दीपक
सम्पूर्ण निष्ठा से तैयार किया हुआ
कोमल भावों का नेवैद्य
समर्पण के लिए सभी कुछ तो
करीने से सुसज्जित है
पूजा के थाल में
कब आओगे प्रभु इस अर्ध्य को
स्वीकार करने
और इस जीवन को
कृतार्थ करने ?
साधना वैद
No comments:
Post a Comment