Tuesday, August 20, 2019

राम तुम बन जाओगे





आओ तुमको मैं दिखाऊँ
मुट्ठियों में बंद कुछ
लम्हे सुनहरे,
और पढ़ लो
वक्त के जर्जर सफों पर
धुंध में लिपटे हुए
क़िस्से अधूरे !
आओ तुमको मैं सुनाऊँ
दर्द में डूबे हुए नग़मात
कुछ भूले हुए से,
और कुछ बेनाम रिश्ते
वर्जना की वेदियों पर
सर पटक कर आप ही
निष्प्राण हो
टूटे हुए से !
और मैं प्रेतात्मा सी
भटकती हूँ
उम्र के वीरान से इस
खंडहर में
कौन जाने कौन सी
उलझन में खोई,
देखती रहती हूँ
उसकी राह
जिसकी दृष्टि में
पाई नहीं
पहचान कोई !
बन चुकी हूँ इक शिला
मैं झेल कर
संताप इस निर्मम
जगत के,
और बेसुध सी कहीं
सोई पड़ी हूँ
वंचना की गोद में
धर कर सभी
अवसाद उस बेकल
विगत के !
देख लो इक बार
जो यह भग्न मंदिर
और इसमें प्रतिष्ठित
यह भग्न प्रतिमा
मुक्ति का वरदान पाकर
छूट जाउँगी सकल
इन बंधनों से,
राम तुम बन जाओगे
छूकर मुझे
और मुक्त हो जायेगी इक
शापित अहिल्या
छू लिया तुमने उसे
जो प्यार से निज
मृदुल कर से !

साधना वैद  







19 comments:

  1. व्वाहहहह..
    बेहतरीन..
    सादर नमन..

    ReplyDelete
  2. बेहतरीन सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  3. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार भाई दिग्विजय जी ! सादर वन्दे !

    ReplyDelete
  4. हार्दिक धन्यवाद ऋतुु जी !

    ReplyDelete
  5. सुप्रभात
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति |सुन्दर प्रस्तुति |

    ReplyDelete
  6. हार्दिक धन्यवाद जीजी !

    ReplyDelete
  7. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " गुरूवार 22 अगस्त 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  8. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार मीना जी ! सप्रेम वन्दे !

    ReplyDelete
  9. धुंध में लिपटे हुए
    क़िस्से अधूरे !


    hmmmmmmmm..... nishabd kr diyaa in 6 lafzon ne mujhe....

    bahut bahut dhanywaad...aisaa likhne ke liye....

    ReplyDelete
  10. बेहतरीन सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete

  11. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २६ अगस्त २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    ReplyDelete
  12. दर्द में डूबे हुए नग़मात
    कुछ भूले हुए से,
    और कुछ बेनाम रिश्ते
    वर्जना की वेदियों पर
    सर पटक कर आप ही
    निष्प्राण हो
    टूटे हुए से !
    और मैं प्रेतात्मा सी
    भटकती हूँ
    उम्र के वीरान से इस
    खंडहर में
    वाह!!!
    लाजवाब हमेशा की तरह लाजवाब सृजन

    ReplyDelete
  13. हार्दिक धन्यवाद ज़ोया जी! आभार आपका !

    ReplyDelete
  14. हार्दिक धन्यवाद पूरन मल मीणा जी ! आभार आपका !

    ReplyDelete
  15. हार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! आभारी हूँ !

    ReplyDelete
  16. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! धन्यवाद ज्ञापन में विलम्ब के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ ! एक सप्ताह के लिए ताशकंद की यात्रा पर बाहर थी !

    ReplyDelete
  17. हार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! रचना आपको अच्छी लगी मन मेरा मुदित हुआ!

    ReplyDelete
  18. भटकती हूँ
    उम्र के वीरान से इस
    खंडहर में
    वाह.....लाजवाब

    ReplyDelete
  19. हार्दिक धन्यवाद संजय आपका !

    ReplyDelete