तुम सुनो ना सुनो
सुबह की प्रभाती
दिन का ऊर्जा गान
साँझ का सांध्य गीत
रात्रि की लोरी
हमें तो रोज़ ही गाना है
यह स्वर साधना हमारी
दिनचर्या का
अनिवार्य अंग है !
हम नित्य इन सुरों को
साधते हैं और तुम
नित्य अनसुना कर देते हो
या इन्हें सुन कर भी
इनका कोई असर नहीं लेते !
नित्य गीत गाना
हमारी आदत है और
नित्य इन्हें अनसुना कर देना
तुम्हारी फितरत है !
तुम्हीं कहो ग़लत कौन है
तुम या हम ?
कि हमारे इतने मीठे
इतने सुरीले
इतने मधुर गीत
यूँ ही अनसुने
हवाओं में बिखर कर
व्यर्थ हो जाते हैं और
कितने ही कातर प्राण
स्पंदित होने से
वंचित रह जाते हैं?
साधना वैद
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (25-09-2019) को "होगा दूर कलंक" (चर्चा अंक- 3469) पर भी होगी। --
ReplyDeleteसूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
Deleteव्वाहहहह..
ReplyDeleteबेहतरीन..
सादर...
हार्दिक धन्यवाद दिग्विजय जी ! आभार आपका !
Deleteबेहद सुंदर रचना आदरणीया दी
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अभिलाषा जी ! आभार आपका !
Deleteबहुत सुन्दर सृजन आदरणीया दी ।
ReplyDeleteह्रदय से धन्यवाद आपका मीना जी ! आभार आपका !
Deleteबेहतरीन सृजन आदरणीया
ReplyDeleteसादर
आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! अभिनन्दन !
Deleteशानदार रचना |
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जी ! आभार आपका !
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
३० सितंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी! सप्रेम वन्दे !
Deleteखूबसूरत अंदाज़
ReplyDeleteलाजवाब रचना।
पधारें शून्य पार
हार्दिक धन्यवाद रोहितास जी ! आभार आपका !
Deleteवाह !बेहतरीन सृजन दी जी
ReplyDeleteआपका हृदय बहुत बहुत आभार अनीता जी ! दिल से शुक्रिया !
Deleteबेहतरीन सृजन ,सादर नमस्कार
ReplyDeleteबेहतरीन रचना।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सुजाता जी ! आभार आपका !
Delete