हसरत ही रही
मैं पुष्पगुच्छ बन
रजनीगन्धा का
तुम्हें भेंट किया जाता !
तुम अतुलनीय प्यार से
मुझे अपने हाथों में थाम
माथे से लगातीं
सराहना भरी दृष्टि से
निर्निमेष मुझे देर तक
निहारतीं
फिर नयन मूँद
चाँदनी से शुभ्र श्वेत
मेरे
कोमल पुष्पों को
अपने मृदुल स्पर्श से
हौले हौले सहलातीं !
धीमे से उन्हें ऊपर उठा
गहरी साँस ले उनकी सारी
भीनी भीनी सुगंध को
बड़ी तृप्ति के साथ
आत्मसात करतीं !
अपने कोमल कपोलों से
उन्हें बड़े प्यार से
छुलातीं
और अगाध प्यार से
अपने हृदय से लगा कर
कमरे की खुली खिड़की के पास
जाकर मेरी यादों में खो
जातीं !
तुम्हारे नैनों की
आर्द्रता
मेरे जीवन की सबसे
अनमोल धरोहर होती !
और उस नमी के सहारे ही
मैं खिला रहता
अनंत काल तक
तुम्हारे सुबहो शाम
तुम्हारे दिन रात
महकाने के लिये
तुम्हारे तृषित अधरों पर
एक मीठी सी मुस्कान
लाने के लिये !
जो होता मैं एक पुष्पगुच्छ
रजनीगन्धा का !
साधना वैद
बेहद खूबसूरत रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनुराधा जी ! आभार आपका !
Deleteअति सुंदर
ReplyDeleteकल्पना बहुत सुन्दर है |
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Delete
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 2 अक्टूबर 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका पम्मी जी ! सप्रेम वंदे !
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ज्योति खरे जी ! आभार आपका !
Deleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वंदे !
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