Thursday, November 28, 2019

आये थे तेरे शहर में



आये थे तेरे शहर में मेहमान की तरह,
लौटे हैं तेरे शहर से अनजान की तरह !

सोचा था हर एक फूल से बातें करेंगे हम,
हर फूल था मुझको तेरे हमनाम की तरह !

हर शख्स के चहरे में तुझे ढूँढते थे हम ,
वो हमनवां छिपा था क्यों बेनाम की तरह !

हर रहगुज़र पे चलते रहे इस उम्मीद पे,
यह तो चलेगी साथ में हमराह की तरह !

हर फूल था खामोश, हर एक शख्स अजनबी,
भटका किये हर राह पर गुमनाम की तरह !

अब सोचते हैं क्यों थी तेरी आरजू हमें,
जब तूने भुलाया था बुरे ख्वाब की तरह !

तू खुश रहे अपने फलक में आफताब बन,
हम भी सुकूँ से हैं ज़मीं पे ख़ाक की तरह !

साधना वैद

10 comments:

  1. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २ नवंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,

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    1. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सप्रेम वन्दे ! २ नवम्बर के स्थान पर २ दिसंबर कर लीजिये अपनी सूचना में ! आभार !

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    1. हार्दिक धन्यवाद नदीश जी ! आभार आपका !

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    1. हार्दिक धन्यवाद जीजी ! दिल से आभार !

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  5. वाह!!साधना जी ,बहुत खूब!!

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    1. हृदय से आपका बहुत बहुत धन्यवाद शुभा जी ! आभार आपका !

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