चंद हाइकू और ताँका
ठण्ड की रात
बर्फीली हवा
छाया कोहरा
भारी अलाव पर
छाया कोहरा !
सीली लकड़ी
बुझता सा अलाव
जला नसीब !
बर्फ सी रात
फुटपाथ की शैया
मुश्किल जीना !
फटा कम्बल !
पक्के मकान
मुलायम रजाई
पूस की रात !
दीन झोंपड़ी
जीर्ण शीर्ण बिस्तर
कटे न रात !
चाँद तारे समाये
नीली झील में !
पूस की रात
‘हल्कू’ की याद आई
मन पसीजा !
चाँद ने पूछा
कौन उघडा पड़ा
सर्द रात में
बोल पड़े सितारे
ये हैं धरतीपुत्र !
करे लड़ाई
दिनकर धूप से
छाया कोहरा !
घर में घुसा रवि
छिपा कर चेहरा !
आज भी ‘हल्कू’
बिताते सड़क पे
ठण्ड की रात
कुछ भी न बदला
स्वतन्त्रता के बाद !
साधना वैद
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (13 -12-2019 ) को " प्याज बिना स्वाद कहां रे ! "(चर्चा अंक-3548) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता लागुरी"अनु"
वाह दिल को छू गई आपकी रचना शीर्षक पढ़कर ही खत का मजनुम समझ आने लगा था.. बहुत ही खूबसूरत लिखा आपने #पूस की रात👌
ReplyDeleteरचना आपको अच्छी लगी मेरा श्रम सफल हुआ ! हार्दिक धन्यवाद अनीता जी !
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१६ दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteबेहतरीन सृजन।
ReplyDeleteआज भी ‘हल्कू’
ReplyDeleteबिताते सड़क पे
ठण्ड की रात
कुछ भी न बदला
स्वतन्त्रता के बाद !
पूस की रातों को समर्पित उम्दा हाइकु और ताँका आदरणीय साधना जी। हार्दिक शुभकामनायें और बधाई। 🙏🙏🙏
बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteसादर