सर्दी की रात
ठिठका सा कोहरा
ठिठुरा गात !
मंदा अलाव
कँपकँपाता तन
झीने से वस्त्र !
तान के सोया
कोहरे की चादर
पागल चाँद !
काँपे बदन
उघड़ा तन मन
खुला गगन !
चाय का प्याला
सर्दी की बिसात पे
बौना सा प्यादा !
लायें कहाँ से
धरती की शैया पे
गर्म रजाई !
ठंडी हवाएं
सिहरता बदन
बुझा अलाव !
चाय की प्याली
सर्दी के दानव को
दूर भगाए !
दे दे इतना
जला हुआ अलाव
गरम चाय !
आँसू की बूँदें
तारों के नयनों से
झरती रहीं !
तारों के आँसू
आँचल में सहेजे
धरती माता !
साधना वैद
वाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर...
हार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! आभार आपका !
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१६ दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आपका श्वेता जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteबेहतरीन 👌👌👌
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक सृजन ,सादर नमस्कार आपको
ReplyDeleteहृदय तल से आभार आपका कामिनी जी ! रचना आपको अच्छी लगी मन मगन हुआ !
Deleteवाह बहुत ही सुंदर सटीक एवं सार्थक रचना।
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया सुजाता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteतान के सोया
ReplyDeleteकोहरे की चादर
पागल चाँद !
बहुत ही सुंदर हैं रचना। सभी बन्ध अपनी विशेष आभा के साथ मौजूद है। सादर 🙏🙏
हार्दिक धन्यवाद रेनू जी ! आभार आपका !
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