इन दिनों
मन की खामोशियों को
रात भर गलबहियाँ डाले
गुपचुप फुसफुसाते हुए सुनना
मुझे अच्छा लगता है !
अपने हृदय प्रकोष्ठ के द्वार पर
निविड़ रात के सन्नाटों में
किसी चिर प्रतीक्षित दस्तक की
धीमी-धीमी आवाजों को
सुनते रहना
मुझे अच्छा लगता है !
रिक्त अंतरघट की
गहराइयों में हाथ डाल
निस्पंद उँगलियों से
सुख के भूले बिसरे
दो चार पलों को
टटोल कर ढूँढ निकालना
मुझे अच्छा लगता है !
थकान के साथ
शिथिलता का होना
अनिवार्य है ,
शिथिलता के साथ
पलकों का मुँदना भी
तय है और
पलकों के मुँद जाने पर
तंद्रा का छा जाना भी
नियत है !
लेकिन सपनों से खाली
इन रातों में
थके लड़खड़ाते कदमों से
खुद को ढूँढ निकालना
और असीम दुलार से
खुद ही को निज बाहों में समेट
आश्वस्त करना
मुझे अच्छा लगता है !
साधना वैद
बहुत सुंदर!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद !
Deleteसार्थक सृजन।
ReplyDeleteअच्छा का सबका अपना मीटर है।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! रचना आपको अच्छी लगी मेरा लिखना सफल हुआ !
ReplyDeleteथके लड़खड़ाते कदमों से
ReplyDeleteखुद को ढूँढ निकालना
और असीम दुलार से
खुद ही को निज बाहों में समेट
आश्वस्त करना
मुझे अच्छा लगता है !
बहुत खूब दी,कभी कभी खुद का साथ बहुत शुकुन देता हैं। भावपूर्ण सृजन ,सादर नमन
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-6-2020 ) को "नन्ही जन्नत"' (चर्चा अंक 3748) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteहार्दिक धन्यवाद कामिनी जी ! रचना आपको अच्छी लगी मेरा श्रम सार्थक हुआ !
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद महोदय ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteइस बेहतरीन लिखावट के लिए हृदय से आभार Appsguruji(जाने हिंदी में ढेरो mobile apps और internet से जुडी जानकारी )
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