Thursday, December 31, 2020

नया साल

 



नव वर्ष की सभी बंधु बांधवों को हार्दिक बधाई एवं अनंत अशेष शुभकामनाएं 


नया साल


जश्न तो मनाना है 

नये साल को बुलाना है

जो दुःख दिये बीते साल ने

सिरे से उन्हें भुलाना है !

आने वाला साल

सुखकारी हो सबके लिये

हितकारी हो सबके लिये

फलदायी हो सबके लिये

मंगलकारी हो सबके लिये !

सब हों सफल

सब हों उल्लसित,

सब हों स्वस्थ  

सब हों प्रफुल्लित

मन में हो विश्वास  

आँखों में सपने,

छूटे ना किसीका साथ

साथ में हों अपने !

साकार करें प्रभु

हर मन की आस,

टूटे न किसीका सपना

बिखरे न विश्वास !

सबकी इच्छापूर्ति के लिए

प्रभु को मनाना है !

द्वार पर खड़ा है

२०२१ का नया साल

अभ्यर्थना कर उसकी

उसे अन्दर हमें लाना है!

मेहमान के स्वागत में

आज सब दुःख भूल कर

जश्न तो मनाना है !

 

साधना वैद

 

 


Wednesday, December 23, 2020

बुरे काम का बुरा नतीजा - बाल कथा

 


आओ बच्चों आज मैं आपको एक कहानी सुना रही हूँ जो बहुत पुराने ज़माने की है ! किसी देश में एक छोटा सा गाँव था ! उस गाँव की आबादी बहुत कम थी और जितने भी लोग वहाँ रहते थे सब बहुत प्यार से हिल मिल के रहते थे ! बच्चों उस गाँव में सब हाथ से काम करने वाले बहुत ही हुनरमंद कारीगर रहा करते थे ! पता है उन्हें हाथ से काम क्यों करना पड़ता था ? वो इसलिए कि उन दिनों मशीनों का अविष्कार नहीं हुआ था ! कल कारखाने नहीं थे ! तो उस गाँव के सारे लोग बहुत मेहनत करके सभी काम अपने हाथों से किया करते थे और सब अपने काम में बड़े माहिर भी थे ! उसी गाँव में एक दर्जी भी रहता था ! एक से बढ़ कर एक पोशाक वो बनाता ! इतनी सुन्दर कि सब देखते ही रह जाएँ और वो भी अपने हाथों से क्योंकि उसके पास भी तो कोई मशीन थी ही नहीं !

बच्चों वो दर्जी बहुत ही दयालू भी था ! एक हाथी से उस की बड़ी पक्की दोस्ती थी ! गाँव के पास ही एक नदी बहती थी ! वह हाथी रोज़ उस नदी में नहाने के लिए जाता था ! रास्ते में उसके दोस्त दर्जी की दूकान पड़ा करती थी ! जैसे ही हाथी उसकी दूकान के सामने आता अपनी सूँड उठा कर दर्जी को सलाम करता और दर्जी रोज़ उसकी सूँड को हाथों से सहला कर उसे केले खाने के लिए देता ! हाथी नदी से नहा कर लौटता तो फिर से दर्जी को सलाम करने के लिए उसकी दूकान के सामने थोड़ी देर के लिए रुकता और फिर अपनी राह चला जाता ! आसपास के दुकानदार भी दर्जी और हाथी की इस प्यार भरी दोस्ती के बारे में जानते थे ! उनके लिए यह रोज़ की दिनचर्या का हिस्सा था !

एक बार क्या हुआ बच्चों कि उस देश के राजा ने दर्जी को बुलवा भेजा ! उसके बेटे यानी कि राजकुमार की शादी थी और राजा को उसके लिए बहुत सुन्दर सुन्दर कपड़े सिलवाने थे ! दर्जी का एक बेटा भी था सुजान नौ दस साल का ! बहुत ही शैतान और खुराफाती ! दर्जी उसे काम सिखाने की बहुत कोशिश करता लेकिन उसका काम में ज़रा भी मन नहीं लगता ! हर समय शैतानियाँ करने में ही उसे मज़ा आता था ! राजा के बुलावे पर जब दर्जी महल जाने लगा तो अपने बेटे सुजान को दूकान पर बैठा गया कि जब तक वह लौट कर न आये दूकान का ख़याल रखे और तुरपाई करने के लिए एक कपड़ा भी दर्जी ने उसे इस हिदायत के साथ दे दिया कि लौट कर आने तक वह इसकी तुरपाई ख़तम करके रखे !


रोज़ के वक्त पर हाथी दूकान के सामने आया ! दर्जी तो नहीं था हाथी ने अपनी सूँड उठा कर सुजान को सलाम किया ! सुजान तो वैसे ही चिढ़ा हुआ बैठा था ! उसे तुरपाई का काम जो करना पड़ रहा था ! उसने हाथी को केले तो दिये नहीं उलटे गुस्से में भर कर उसकी सूँड में ज़ोर से सुई चुभो दी ! हाथी दर्द से चिंघाड़ उठा ! उसने गुस्से से भर कर सुजान को देखा और नदी की तरफ नहाने के लिए चला गया ! आस पास के दुकानदार हाथी के व्यवहार से हैरान थे ! सुजान के चहरे पर बड़ी कुटिल मुस्कान थी ! इतने बड़े हाथी को उसने पछाड़ दिया ! जब आस पास के दुकानदारों ने सुजान से पूछा हाथी इस तरह चिल्लाया क्यों ? तब खुराफाती सुजान ने बड़ी शान के साथ अपनी ‘बहादुरी’ की बात उन्हें बता दी ! सारे दुकानदार सुजान से बहुत गुस्सा हुए, उसे बुरा भला भी कहा और समझाया भी लेकिन वह हाथी को परेशान करके बड़ा खुश था ! तभी हाथी नदी से नहा कर वापिस आया और रोज़ की तरह ही दूकान के सामने रुका ! आस पास के लोग बड़े ध्यान से हाथी को देख रहे थे ! हाथी ने अपनी सूँड ऊपर उठाई ! सब चकित थे कि सुजान के दुर्व्यवहार के बाद भी यह सुजान को सलाम क्यों कर रहा है लेकिन हाथी नदी से अपनी सूँड में खूब सारा कीचड़ भर कर लाया था और उसने वह सारा कीचड़ सुजान पर और दूकान में रखे कपड़ों पर फव्वारे की तरह फूँक दिया और अपनी राह चला गया ! सारी दूकान, सुजान और ग्राहकों के कपड़े कीचड़ से तर ब तर हो गए ! डर के मारे सुजान थर-थर काँप रहा था कि जब बापू राजा साहेब के यहाँ से लौट कर आयेंगे तो क्या होगा !


तो बच्चों यह थी कहानी बुरे काम का बुरा नतीजा ! दर्जी रोज़ हाथी को प्यार करता था उसे केले देता था तो हाथी भी उसका आदर करता था उसे सलाम करता था लेकिन सुजान ने उसकी सूँड में सुई चुभो कर गलत काम किया था ना ? इसीलिये हाथी ने उसे सज़ा दी !

 



साधना वैद 


Saturday, December 19, 2020

रहस्य

 



कभी-कभी

बहुत दूर से आती

संगीत की धीमी सी आवाज़

जाने कैसे एक

स्पष्ट, सुरीली, सम्मोहित करती सी

बांसुरी की मनमोहक, मधुर, मदिर

धुन में बदल जाती है !

कभी-कभी

आँखों के सामने

अनायास धुंध में से उभर कर

आकार लेता हुआ

एक नन्हा सा अस्पष्ट बिंदु

जाने कैसे अपने चारों ओर

अबूझे रहस्य का

अभेद्य आवरण लपेटे

एक अत्यंत सुन्दर, नयनाभिराम,

चित्ताकर्षक चित्र के रूप में

परिवर्तित हो जाता है !

कभी-कभी

साँझ के झीने तिमिर में

हवा के हल्के से झोंके से काँपती

दीप की थरथराती, लुप्तप्राय सुकुमार सी लौ

किन्हीं अदृश्य हथेलियों की ओट पा

सहसा ही अकम्पित, प्रखर, मुखर हो

जाने कैसे एक दिव्य, उज्जवल

आलोक को विस्तीर्ण

करने लगती है !

हा देव !

यह कैसी पहेली है !

यह कैसा रहस्य है !

मन में जिज्ञासा होती है ,

एक उथल-पुथल सी मची है ,

घने अन्धकार से अलौकिक

प्रकाश की ओर धकेलता

यह प्रत्यावर्तन कहीं

किसी दैविक

संयोग का संकेत तो नहीं ?



साधना वैद

Friday, December 11, 2020

जग की रीत -- कुछ दुमदार दोहे

 


एक दुम वाले दोहे 


बहती जलधारा कभी, चढ़ती नहीं पहाड़ 

एक चना अदना कहीं, नहीं फोड़ता भाड़ !

व्यर्थ मत पड़ चक्कर में ! 


चूर हुआ शीशा कभी, जुड़ता नहीं जनाब 

मोती गिरता आँख से, खोकर अपनी आब !

कौन इसको चमकाए !  


'राज' करेंगे जो दिया, 'राजनीति' का नाम 

'दासनीति' कहिये इसे, और करायें काम ! 

नाम की महिमा भारी ! 


वाणी में विद्रूप हो, शब्दों में उपहास 

घायल कर दे बात जो, यह कैसा परिहास !

कभी मत करो ठिठोली !


तुकांत दुम वाले दोहे 


उगते सूरज को सभी, झुक-झुक करें सलाम 

जीवन संध्या में हुआ, यश का भी अवसान ! 

सुनो क्या खूब कही है, 

जगत की रीत यही है ! 


अंधा बाँटे रेवड़ी, फिर-फिर खुद को देय

जनता को भूखा रखें, 'नेता' का यह ध्येय !

मतलबी बड़े ‘सयाने’  

घाघ ये बड़े पुराने !


नेता सारे एक से, किसकी खोलें पोल 

अपनी ढकने के लिये, बजा रहे हैं ढोल ! 

चले जग को समझाने,

कोई न इनकी माने !


बाप न मारी मेंढकी, बेटा तीरंदाज़ 

नेताजी के पूत का, नया-नया अंदाज़ ! 

कौन इसको समझाये, 

कहे सो मुँह की खाये ! 


भर जाते हैं ज़ख्म वो, देती जो तलवार 

रहते आजीवन हरे, व्यंगबाण के वार ! 

ज़हर मत मन में घोलो 

कभी तो मीठा बोलो !  


जीवन जीने के लिये, ले लें यह संकल्प 

सच्ची मिहनत का यहाँ, कोई नहीं विकल्प ! 

उठा सूरज काँधे पर, 

चाँद तारे ला भू पर ! 


साधना वैद 


Sunday, December 6, 2020

उबटन


चल री गुलाबो
सुबह सुबह अपने मुख पर
हम भी धूल का उबटन लगा लेते हैं
वो कोठी वाली मेम साब की तरह
हम भी अपना चेहरा
अच्छी तरह से चमका लेते हैं !
वो तो मिलाती हैं
अपने उबटन में
दूध, दही, हल्दी, चन्दन, केसर,
मंहगे वाला तेल, नीबू का रस
और भी जाने क्या क्या ;
हमारे पास भी तो हैं
अपने उबटन में मिलाने के वास्ते
धूल, मिट्टी, रेतिया
पसीना, आँसू, घड़े का पानी
हम भी कुछ कम अमीर हैं क्या ?
देख गुलाबो
मुँह धोने के बाद घर में
बिलकुल अकेली बैठी
चाय पीती मेम साब का चेहरा
कितना थका थका सा
लगता है ना उदासी से !
और शाम को घर लौट कर
धूल पसीने का अपना उबटन
नल के पानी से धोने के बाद
हमारा चेहरा कैसा खिल उठता है
अपने बच्चों से मिल कर खुशी से !
उबटन हल्दी चन्दन का हो
या फिर धूल पसीने का
चेहरा चमकता है
सबर से, संतोष से,
मन के अन्दर की खुशी से
जो महल वालों को भी नसीब नहीं
चाहे पूछ लो किसीसे !

चित्र - गूगल से साभार

साधना वैद

Friday, December 4, 2020

अवमूल्यन

 

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नहीं आये न तुम !
अच्छा ही किया !
जो आते तो शायद
निराश ही होते !
कौन जाने मैं पहले की तरह
तुम्हारी आवभगत
तुम्हारा स्वागत सत्कार
तुम्हारी अभ्यर्थना
कर भी पाती या नहीं ?
आखिरकार इंतज़ार भी तो
निरंतर कसौटी पर कसा जाकर
कभी न कभी
दम तोड़ ही देता है !
आशा की डोर भी तो
कभी न कभी
कमज़ोर होकर
टूट ही जाती है और
जतन से सहेजी हुई
माला के सारे मनके
एक ही पल में भू पर
बिखर कर रह जाते हैं !
पथ पर टकटकी लगाए
आँखे भी तो थक कर
कभी न कभी
पथरा ही जाती हैं और
परस्पर पत्थरों के मध्य
भाव सम्प्रेषण की
सारी संभावनाएं फिर
शून्य हो जाती हैं !
और अनन्य प्रेम की
सुकोमल पौध में भी
बारम्बार गुज़रते मौसमों की
बेरहम चोटों से
कभी न कभी
नाराज़गी की दीमक
लग ही जाती है
जो कालान्तर में उसे
समूल नष्ट कर जाती है !
अब इस खंडहर में
इन अनमोल भावनाओं के
सिर्फ चंद अवशेष ही बाकी हैं !
जो शायद किसी को भी
प्रीतिकर नहीं होंगे !
कम से कम
तुम्हें तो हरगिज़ नहीं !
क्योंकि अपना ही ह्रास
अपना ही अवमूल्यन
अपना ही क्षरण
भला कोई कैसे
स्वीकार कर सकता है !
इसलिये
वक्त की फिरी हुई
नज़रों के इस वार से
जो तुम बचना चाहते हो
तो इस वीरान खंडहर में
अब फिर कभी
भूले से भी न आना
वही ठीक रहेगा !


साधना वैद