Saturday, December 19, 2020

रहस्य

 



कभी-कभी

बहुत दूर से आती

संगीत की धीमी सी आवाज़

जाने कैसे एक

स्पष्ट, सुरीली, सम्मोहित करती सी

बांसुरी की मनमोहक, मधुर, मदिर

धुन में बदल जाती है !

कभी-कभी

आँखों के सामने

अनायास धुंध में से उभर कर

आकार लेता हुआ

एक नन्हा सा अस्पष्ट बिंदु

जाने कैसे अपने चारों ओर

अबूझे रहस्य का

अभेद्य आवरण लपेटे

एक अत्यंत सुन्दर, नयनाभिराम,

चित्ताकर्षक चित्र के रूप में

परिवर्तित हो जाता है !

कभी-कभी

साँझ के झीने तिमिर में

हवा के हल्के से झोंके से काँपती

दीप की थरथराती, लुप्तप्राय सुकुमार सी लौ

किन्हीं अदृश्य हथेलियों की ओट पा

सहसा ही अकम्पित, प्रखर, मुखर हो

जाने कैसे एक दिव्य, उज्जवल

आलोक को विस्तीर्ण

करने लगती है !

हा देव !

यह कैसी पहेली है !

यह कैसा रहस्य है !

मन में जिज्ञासा होती है ,

एक उथल-पुथल सी मची है ,

घने अन्धकार से अलौकिक

प्रकाश की ओर धकेलता

यह प्रत्यावर्तन कहीं

किसी दैविक

संयोग का संकेत तो नहीं ?



साधना वैद

15 comments:

  1. अति सुन्दर विचार प्रेरक कविता।

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    1. हार्दिक धन्यवाद विमल जी ! स्वागत है आपका इस ब्लॉग पर ! बहुत बहुत आभार !

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    1. हृदय से धन्यवाद आपका तिवारी जी ! बहुत बहुत आभार !

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  3. घने अन्धकार से अलौकिक
    प्रकाश की ओर धकेलता
    यह प्रत्यावर्तन कहीं
    किसी दैविक
    संयोग का संकेत तो नहीं ?
    ... दार्शनिक चिंतन से भरी सुंदर रचना।

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    1. उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद सिन्हा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  4. बहुत सुन्दर।
    अन्य ल ोगों के ब्लॉगों पर भी टिप्पणी किया करो।

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    1. हृदय से धन्यवाद आपका शास्त्री जी ! समय का इतना अभाव रहता है कि अपने ब्लॉग पर ही रचना नहीं डाल पाती कई कई दिनों तक ! आपके सुझाव पर अमल करने का प्रयास करूंगी ! दिल से आभार आपका !

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  5. घने अन्धकार से अलौकिक
    प्रकाश की ओर धकेलता
    यह प्रत्यावर्तन कहीं
    किसी दैविक
    संयोग का संकेत तो नहीं ?...

    बहुत सुंदर रचना साधना जी 🌷🙏🌷

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    1. हार्दिक धन्यवाद आपका शरद जी ! हृदय से स्वागत है आपका इस ब्लॉग पर ! दिल से आभार !

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  6. बहुत ही सुगठित सरस रचना

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    1. हार्दिक धन्यवाद आलोक जी ! स्वागत है आपका इस ब्लॉग पर ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  7. सुन्दर भाव लिए रचना |

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  8. हार्दिक धन्यवाद एवं बहुत बहुत आभार जीजी !

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  9. घने अन्धकार से अलौकिक
    प्रकाश की ओर धकेलता
    यह प्रत्यावर्तन कहीं
    किसी दैविक
    संयोग का संकेत तो नहीं ?...सुंदर रचना

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