सर्दी की रात
ठिठका सा कोहरा
ठिठुरा गात
कोई दे जाता
चाय का एक प्याला
ज़रा सी बात
तान के सोया
कोहरे की चादर
पागल चाँद
काँपते हाड़
ठिठुरता बदन
बजते दाँत
मंदा अलाव
कँपकँपाता तन
झीने से वस्त्र
चाय का प्याला
शीत को भगाने का
है मूल मन्त्र
धरतीपुत्र
दिन रात करते
जी तोड़ काम
मारक सर्दी
अदरक की चाय
देती आराम
ठंडी हवाएं
सिहरता बदन
बुझा अलाव
ठिठुरे लोग
ढाबे की गर्म चाय
जले अलाव
चाय का प्याला
सर्दी की बिसात पे
बौना सा प्यादा
दे देता मात
सर्दी के वज़ीर को
बन के दादा
गर्म रजाई
धरती की शैया पे
कहाँ से लाये
चाय की प्याली
सर्दी के दानव की
बैंड बजाये
जो मिल जाए
जला हुआ अलाव
गरम चाय
ओ मेरे मौला
जीत लेंगे दुनिया
दे दे तू चाय !
साधना वैद
सुंदर हाइकु संकलन....
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद विकास जी ! आभार आपका !
Deleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार मीना जी ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक हाइकु ।
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया अमृता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteसुन्दर सृजन।
ReplyDeleteहृदय से धन्यवाद आपका शान्तनु जी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteहार्दिक धन्यवाद ज्योति जी! हृदय से बहुत बहुत आभार आपका !
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शिवम् जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 01 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबड़ी देर से देख पाई दिव्या जी ! खेद है ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार ! सप्रेम वन्दे !
Deleteहा हा हा मज़ा आ गया चाय का.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आपको आनंद आया ! हार्दिक धन्यवाद नूपुर जी ! आभार आपका !
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