महिला सशक्तिकरण की जब बात उठती है तो सबसे बड़ी विडम्बना यही देखने में आती है कि समाज में महिलाओं की सामर्थ्य, प्रतिभा एवं क्षमताओं को हमेशा पुरुषों की दृष्टि से ही देखा और आँका जाता रहा है ! इसमें तो कोई दो राय हो ही नहीं सकतीं कि शारीरिक बल में स्त्रियाँ पुरुषों की तुलना में दुर्बल ही सिद्ध होंगी ! लेकिन क्या शक्ति की सार्थकता केवल बाहुबल, अधिक बोझा उठा लेने में या अपने प्रतिद्वंद्वी को द्वंद्व में पराजित कर देने में ही है ? वास्तव में शक्ति उस इंसान के पास है जिसके पास उपलब्ध संसाधनों को सही प्रकार से इस्तेमाल करने की क्षमता हो, सोचने की शक्ति हो, दूरदर्शिता हो और इन सबका उचित रूप से समन्वय कर उपयोग करने की समझ हो ! शक्ति से तात्पर्य शारीरिक बल से नहीं वरन विकसित एवं समुन्नत सोच एवं वैचारिक प्रबुद्धता से है और इन क्षमताओं को विकसित करने में स्त्री या पुरुष का अंतर कोई मायने नहीं रखता !
इस दृष्टि से देखा जाए तो स्वयं प्रकृति ने ही स्त्री
को बहुत सामर्थ्यवान एवं शक्तिशाली बनाया है ! दुःख इस बात का है कि अधिकाँश
नारियाँ अपने अन्दर निहित इन गुणों से अनभिज्ञ हैं और पूर्ण रूप से सक्षम, सबल एवं
समर्थ होते हुए भी अज्ञानतावश अपनी हर बात के लिए वे घर के पुरुषों पर आश्रित होती
हैं ! ‘कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढूँढें बन माँही’ पंक्ति हमारे समाज की नारियों पर
पूरी तरह से चरितार्थ होती है ! कदाचित इसीलिये वे स्वयं अपने लिए भी कोई निर्णय
नहीं ले पातीं ! एक प्रकार से वे घर परिवार के पुरुषों के इशारे पर चलने वाली
कठपुतली मात्र बन कर रह जाती हैं और जीवन भर उनकी अनुगामिनी बनी रहती हैं ! महिला
सशक्तिकरण से तात्पर्य वास्तव में नारी को उसके अन्दर निहित गुणों से परिचित करा
देना और उनका सही प्रकार से उपयोग करने के लिए प्रेरित करना है !
अभी तक भारतीय नारी किन विषमताओं और विसंगतियों
से घिरी कितना संघर्षमय जीवन बिता रही है इसके बारे में जब गंभीरता से सोचते हैं
तो कलेजा काँप उठता है ! आम तौर पर भारतीय समाज में लड़कियों के प्रति बड़ी संकीर्ण
विचारधारा व्याप्त है ! जिसे अपने वजूद को
संसार में लाने के लिये जीने से पहले ही हर साँस के लिये संघर्ष करना पड़े ! जिसे
बचपन अपने माता पिता और बड़े भाइयों के कठोर अनुशासन और प्रतिबंधों में और विवाह के
बाद ससुराल में पति की अर्धांगिनी या सहचरी बन कर नहीं वरन सारे परिवार की दासी और
सेविका बन कर जीने के लिये विवश होना पड़े वो भी इस हद तक कि विधवा हो जाने पर उसे
जीते जी पति के साथ उसकी चिता के हवाले कर परलोक तक की यात्रा में उसकी अनुगामिनी
बनने के लिये मजबूर कर दिया जाये उस नारी के विमर्श की कथा व्यथा क्या कही जाए !
वह ज़िंदा ज़रूर है, साँस भी ले रही है लेकिन हर पल ना
जाने कितनी मौतें मरती है ! ऐसी बातें जब आधुनिक एवं पढ़े लिखे महानगरों के निवासी
कतिपय प्रबुद्ध लोग सुनते हैं तो उनकी भृकुटियाँ तन जाती हैं और उनकी त्वरित
प्रतिक्रया होती है, ‘ये सब तो बढ़ा चढ़ा कर कही गयी बातें हैं ! अब तो बहुत सुधार आ
गया है !’ जी हाँ सुधार और बदलाव के नाम पर इतना परिवर्तन ज़रूर आया है कि विधवा हो
जाने पर पहले स्त्री को ज़बर्दस्ती पति के साथ जीते जी ज़िंदा जला कर उसे सती घोषित
कर दिया जाता था अब उसे धर्म कर्म के नाम पर वृन्दावन, काशी, बनारस के विधवा आश्रमों में नर्क से भी बदतर ज़िंदगी जीने के लिये
घर से निष्कासित कर दिया जाता है !
जीवनपर्यंत नारी को संघर्ष ही तो करना
पड़ता है ! सबसे पहले तो जन्म लेने के लिये संघर्ष ! अगर समझदार, दर्दमंद और दयालु
माता पिता मिल गये तो इस संसार में आँखें खोलने का सौभाग्य उसे मिल जाएगा वरना जिस
कोख को भगवान ने उसे जीवन देने के लिये चुना वही कोख उसके लिये कब्रगाह भी बन सकती
है ! जन्म ले भी लिया तो लड़की होने की वजह से घर में बचपन से ही भेदभाव की शिकार बन
जाती है ! बेटा ‘कुलदीपक’ जो होता है बेटी तो ‘पराया धन’ होती है, एक ‘बोझ की गठरी’ ! मध्यम वर्ग में, जहाँ परिवार में धन की आपूर्ति सीमित
होती है, बेटों की तुलना में बेटियों को हमेशा
दोयम दर्ज़े की ज़िंदगी जीनी पड़ती है ! फल-दूध, मेवा-मिठाई, शौक-फैशन, खेल-खिलौने, शिक्षा-दीक्षा सभी पर पहला अधिकार
परिवार के ‘कुलदीपकों’ का होता है ! बचा खुचा बेटियों के
नसीब में आता है ! शहरों में पले बढ़े और आधुनिकता व पाश्चात्य सभ्यता का रंगीन
चश्मा सदा आँखों पर चढ़ाये रखने वाले चंद पढ़े लिखे, संपन्न और शिक्षित लोगों के गले के नीचे यह बात नहीं उतरती है कि
लड़कियों के साथ ऐसा भेदभाव होता है लेकिन जो भुक्त भोगी हैं ज़रा कभी उनकी आपबीती
भी तो सुनिये ! भारत के गाँवों में आज भी यही मानसिकता दृढ़ता से कायम है और यह भी
उतना ही सच है कि भारत की ८०% जनसंख्या गाँवों में ही रहती है ! आज भी वहाँ स्त्री
का दर्ज़ा घर में नौकरानी से बड़ा नहीं है ! छोटी-छोटी गलतियों पर उसे रूई की तरह
धुन दिया जाता है, मार पीट कर घर से निकाल दिया जाता है, घर वालों की फरमाइशों को पूरा करने के
लिये उससे उम्मीद की जाती है कि वह अपने मायके वालों पर दबाव बनाये और समय-समय पर
ससुराल वालों की ज़रूरत के अनुसार उनसे पैसा बटोर कर लाती रहे ! ऐसा ना कर पाने पर
उसके शरीर पर मिट्टी का तेल डाल उसे ज़िंदा आग के हवाले कर दिया जाता है ! क्या
प्रतिदिन समाचार पत्र ऐसी ख़बरों से रंगे नहीं मिलते ?
आज भी यहाँ स्त्री को प्रेम करने का
अधिकार नहीं है ! अंतर्जातीय सम्बन्ध जोड़ने के दंडस्वरूप उसे सरे आम मौत के घाट
उतार दिया जाता है और सारा समाज मूक तमाशबीन बन न्याय के नाम पर होने वाले इस
अन्याय को घटित होते देखता रहता है !
नारी इन सभी विमर्शों को सदियों से
झेलती आ रही है और सभी प्रतिकूल परिस्थितियों में कठिन संघर्ष करते हुए वह खामोशी
से स्वयं को सिद्ध करने में लगी हुई है लेकिन पुरुष प्रधान इस समाज में लोग कब
उसकी उपलब्धियों का निष्पक्ष होकर आकलन कर पायेंगे यह देखना बाकी है !
भारत सरकार लड़कियों की शिक्षा को लेकर बेहद गंभीर है ! इसीलिये
सरकार द्वारा प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक लड़कियों को प्रोत्साहित करने के
लिए तमाम योजनाएं लागू की गयी हैं ! लड़कियों के लिए कई छात्रवृत्तियाँ शुरू की गयी
हैं ! बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान का व्यापक असर हुआ है, इससे समाज में लड़कियों के जन्म और
उनकी शिक्षा को लेकर आम लोगों की सोच में सकारात्मक बदलाव आया है ! केंद्र सरकार
ने अनेकों ऐसी योजनायें बनाई हैं जो लड़कियों की शिक्षा एवं समाज में उनकी स्थिति
को कारगर रूप से सुदृढ़ करने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं ! लड़कियाँ
अब पहले की तरह सहमी व डरी हुई नज़र नहीं आतीं ! वे उमंग और उत्साह से भरी हैं और
अपने उज्जवल भविष्य के सपने भी देखने लगी हैं ! यह भी हर्ष का विषय है कि महिलाओं की सामाजिक स्थिति में भी पहले
की तुलना में अब धीरे-धीरे बदलाव आने लगा है ! जागरूकता बहुत बढ़ रही है ! स्त्री
शिक्षा का स्तर निरंतर बढ़ता जा रहा है ! अब आवश्यकता है कि इस प्रक्रिया को और
अधिक सुधार कर अधिक उपयोगी और धारदार बनाया जाए ! यह भी आवश्यक है कि स्त्री
शिक्षा को इस रूप में ना देखा जाए कि शिक्षित लड़कियाँ नौकरी के सीमित अवसरों के
कारण लड़कों की प्रतिद्वंद्वी बन जायेंगी और लड़कों के कैरियर के लिए चुनौती बन
जायेंगी ! वर्तमान में जो स्थिति है उसमें ऐसी शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए जिसमें
वे अपने हुनर को निखार सकें, नयी नयी कलाओं एवं स्किल्स को सीख सकें और स्वरोजगार स्थापित
कर अपने आस पास के लोगों को भी उसमें जोड़ सकें !
सरकार ने इस दिशा में अनेकों कारगर योजनाएँ लागू
की हैं !
१ – नेशनल मिशन फॉर एम्पावरमेंट ऑफ़ वूमन – १५
अगस्त २०११ में यह मिशन राष्ट्रीय एवं प्रांतीय स्तर पर लागू किया गया ! इसका
उद्देश्य महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना है !
२ – स्वाधार योजना – यह योजना १८ वर्ष से ऊपर
की स्त्रियों के लिए है जिसके अंतर्गत उनके लिए आवास, भोजन, कपड़े, स्वास्थ्य
सुविधाएँ और सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है !
३ – वन स्टॉप सेंटर योजना – यह घरेलू हिंसा की
त्रासदी झेलने वाली महिलाओं की सहायतार्थ है जिसमें उनको चिकित्सा, कानूनी व मनोवैज्ञानिक
परामर्श सहित अन्य सहायता भी दी जाती है !
४ – बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना – २०१५ में चलाई
गयी इस योजना में लड़कियों के परिवार वालों को उन्हें शिक्षित कराने के लिए
प्रत्साहित किया जाता है ! इस योजना
का मुख्य उद्देश्य है, लड़कियों के स्तर को ऊपर उठाना ! सरकारी आँकड़ों के अनुसार, लड़कियों की संख्या व उनका शैक्षिक
स्तर लड़कों की तुलना में कम हो रहा है ! अभी भी लड़कियों को भार माना जाता है तथा
उनका जन्म ही ना हो इस बात का प्रयास किया जाता है जिसका दुष्परिणाम भ्रूण ह्त्या
के रूप में हमारे सामने आता है !
५ – वर्किंग वूमन होस्टल – यह योजना अपने घर
परिवार से दूर रह कर काम करने वाली महिलाओं के लिए है जिससे वे बिना डर सुरक्षित
रह कर अपनी नौकरी निर्बाध रूप से कर सकें !
६ –
महिला हेल्प लाइन योजना – यह योजना हिंसा से प्रभावित महिलाओं के लिए है ! २४ घंटे
टोल फ्री टेलीकॉम सेवा १८१ नंबर पर उपलब्ध है ! कोई भी महिला कभी भी इस नंबर पर
फोन कर पुलिस की सहायता ले सकती है !
७ – राजीव गाँधी राष्ट्रीय आँगनबाड़ी योजना –
कामकाजी महिलायें अपने बच्चों को यहाँ छोड़ कर जा सकती हैं और शाम को काम समाप्त
होने के बाद बच्चों को वापिस ले जा सकती हैं ! बच्चों के लिए खेलने, सोने व अच्छे
पोषण की सुविधा यहाँ प्रदान की जाती है !
आठ मार्च का दिन अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के
रूप में मनाया जाता है ! सम्पूर्ण विश्व की महिलाओं के लिए यह दिन अत्यंत गौरवशाली
दिन होता है ! इस दिन उनके सम्मान में अनेकों कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं !
अपने अपने क्षेत्र में सफल महिलाओं को सम्मानित एवं पुरस्कृत किया जाता है तथा
महिलाओं के विकास व उत्थान की योजनाओं पर चर्चा की जाती है !
महिला
सशक्तिकरण का मुख्य लाभ समाज से जुड़ा हुआ है ! एक विकसित समाज की स्थापना तभी संभव
हो सकती है जब उस समाज में स्त्री और पुरुष दोनों को समान दर्ज़ा मिला हो ! लिंग
भेद के आधार पर उनमें कोई भेदभाव ना किया जाता हो और स्त्री और पुरुष दोनों को ही
शिक्षा और विकास के समान अवसर प्राप्त होते हों ! जिस समाज में स्त्रियाँ सशक्त
होंगी, शिक्षित होंगी वहाँ स्त्रियों के उत्पीड़न की कल्पना ही निर्मूल होगी !
परिवार खुशहाल होंगे, घरेलू हिंसा नहीं होगी, स्त्रियाँ आत्मनिर्भर होंगी, उनकी
प्रतिभा का सम्मान किया जाएगा व उन्हें भी उन्नति के समान अवसर मिलेंगे ! वे
परिवार की आर्थिक सहायता कर पायेंगी तो परिवार को निर्धनता का सामना नहीं करना पड़ेगा
! स्त्री और पुरुष समान रूप से मिल जुल कर काम करेंगे और आदर्श दाम्पत्य के उदाहरण
प्रस्तुत करेंगे ! महिलायें हर समस्या को स्वयं सुलझा सकेंगी और उनमें भरपूर
आत्मविश्वास होगा ! जिस दिन हमारे देश की हर स्त्री इतनी समर्थ, सबल और सक्षम हो
जायेगी उस दिन महिला सशक्तिकरण का हमारा स्वप्न यथार्थ में साकार हो जाएगा ! और
हमें बहुत प्रसन्नता होती है यह देख कर कि हमारे देश की महिलाओं ने इस पथ पर अपने
कदम बढ़ा लिए हैं !
रूढिवादी
रस्मों रिवाज़ और परम्पराओं की बेड़ियों से जकड़े होने के बावज़ूद भी जीवनधारा के
विरुद्ध प्रवाह में तैरते हुए किस तरह से भारतीय नारी ने आधुनिक समाज में अपनी
उपस्थिति दर्ज कराई है, अपनी पहचान पुख्ता की है नारी के इस
संघर्ष को मैंने अपनी एक कविता में अभिव्यक्ति देने की कोशिश की है ! यह कविता
स्त्री की हर हाल में जीत हासिल करने की उसी अदम्य जिजिविषा की एक निर्मल, निर्बाध
एवं स्पष्ट प्रतिध्वनि है !
तुम क्या जानो
रसोई से बैठक तक ,
घर से स्कूल तक ,
रामायण से अखबार तक
मैने कितनी आलोचनाओं का ज़हर पिया है
तुम क्या जानो !
करछुल से कलम तक ,
बुहारी से ब्रश तक ,
दहलीज से दफ्तर तक
मैंने कितने तपते रेगिस्तानों को पार
किया है
तुम क्या जानो !
मेंहदी के बूटों से मकानों के नक्शों
तक ,
रोटी पर घूमते बेलन से कम्प्यूटर के
बटन तक ,
बच्चों के गड़ूलों से हवाई जहाज़ की
कॉकपिट तक
मैंने कितनी चुनौतियों का सामना किया
है
तुम क्या जानो !
जच्चा सोहर से जाज़ तक ,
बन्ना बन्नी से पॉप तक ,
कत्थक से रॉक तक
मैंने कितनी वर्जनाओं के थपेड़ों को
झेला है
तुम क्या जानो !
सड़ी गली परम्पराओं को तोड़ने के लिये ,
बेजान रस्मों को उखाड़ फेंकने के लिये ,
निषेधाज्ञा में तनी रूढ़ियों की उँगली
मरोड़ने के लिये
मैने कितने सुलगते ज्वालामुखियों की
तपिश को बर्दाश्त किया है
तुम क्या जानो !
आज चुनौतियों की उस आँच में तप कर
प्रतियोगिताओं की कसौटी पर घिस कर, निखर कर
कंचन सी कुंदन सी अपरूप दपदपाती
मैं खड़ी हूँ तुम्हारे सामने
अजेय, अपराजेय, दिग्विजयी !
मुझे इस रूप में भी तुम जान लो
पहचान लो !
उपयोगी आलेख और सुन्दर रचना।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सादर वन्दे !
Deleteआज चुनौती यों की उस आंच में तप कर पर
ReplyDeleteप्रतियोगिताओं की कसौटी पर घिसकर निखर कर
कंचन सी कुंदन सीअपरूप थपथपाती
मैं खड़ी हूं तुम्हारे सामने
अजेय पराजय दिग्विजयी
मुझे इस रूप में तुम भी जान लो पहचान ऋलो
सच में ना जाने कितने संघर्षों की अग्निपरीक्षा ओ को झेला है महिलाओं ने .....नमन प्रणाम
हार्दिक धन्यवाद आपका ! हृदय से आभार !
Deleteमहिलाओं को मानसिक रूप से कमज़ोर करके उनकी इसी कमजोरी का फायदा उठता रहा समाज।
ReplyDeleteलेकिन अब कुछ मायनों में राहत मिली है वो भी पूर्ण नहीं बल्कि आदमी की इच्छा पर आधारित।
नीचे से बराबर तक आने में अभी बहुत सफ़र और जहरीले घूंट पीने होंगे।
शिक्षा से हौसले को नहीं समझ को सदृढ़ करना है।
बहुत महत्वपूर्ण आलेख। सारपूर्ण।
नई रचना
हार्दिक धन्यवाद आपका रोहिताश जी ! आपने नारी के संघर्ष को समझा उसकी वेदना को पहचाना ! उसे यह सकरुण समझ भरी दृष्टि ही चाहिये ! इस एक तिनके का सहारा लेकर वह जीवन की हर झंझा को पार कर लेने की क्षमता रखती है ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक ११-०३-२०२१) को चर्चा - ४,००२ में दिया गया है।
ReplyDeleteआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार केडिया जी ! सादर वन्दे !
ReplyDelete