Tuesday, September 21, 2021

हिन्दी की दशा

 



इंग्लिश रहती महलों में, सडकों पर हिन्दी रोती है

अपनी हिन्दी अपने घर के बाहर नैन भिगोती है !

बच्चे सारे पढ़ते अंग्रेज़ी माध्यम स्कूलों में

हिन्दी में बातें करने पर जहाँ पे झिड़की मिलती है !

जान बूझ कर मम्मी पापा चुनते इन स्कूलों को

फिर हिन्दी की दुर्गति पे क्यों उनकी आँखें झरती हैं !

उल्टी सीधी अंग्रेज़ी में बच्चे गिट पिट करते हैं

लेकिन नहीँ वाक्य इंगलिश का एक शुदध वो लिखते हैं

हिन्दी सुगम सरल भाषा है पढ़ना इसको है आसान

जैसे लिखते वैसे पढ़ते नहीं कोई भी क्लिष्ट विधान

फिर भी इससे जाने क्यों सब करते सौतेला व्यवहार

इसको सरका कोने में करते इंग्लिश की जयजयकार

जो न कर सके अपनी ही भाषा का समुचित आदर मान

नहीं विश्व में कमा सकेंगे वो कोई यश और सम्मान !

होती नहीं मातृभाषा की कहीं उपेक्षा ऐसी भी

जैसी हिन्दी की होती है और अपनी ही बोली की !

बड़े शर्म की बात है इसका कोई तो हल करना है

अपनी भाषा का गौरव हमको स्थापित करना है !

पढ़ें लिखें बोले हिन्दी में हिन्दी का सम्मान करें

शिक्षा का माध्यम हो हिन्दी इसके लिए प्रयास करें !

ज्ञान बढाने के हित चाहे जितनी अन्य भाषा सीखें

लेकिन हिन्दी मातृभाषा है सर्वप्रथम इसको सीखें !

 

साधना वैद


Saturday, September 18, 2021

सुन लो न त्रिपुरारी

 


छन्न पकैया छन्न पकैया, मुश्किल है अब जीना

ग़म ही ग़म इनके जीवन में, पड़ता आँसू पीना  !

 

छन्न पकैया छन्न पकैया, बहती उलटी धारा

आसमान के नीचे इनका, कटता जीवन सारा !

 

छन्न पकैया छन्न पकैया, अब सुन लो त्रिपुरारी

दूर करो इनकी भव बाधा, विघ्न विनाशक हारी !

 

छन्न पकैया छन्न पकैया, तुमको आना होगा

मौसम की विपरीत मार से, इन्हें बचाना होगा !

 

छन्न पकैया छन्न पकैया,  आने को दीवाली

भूखा रहे न कोई जग में, भर दो सबकी थाली !

  

छन्न पकैया छन्न पकैया, क्यों अनर्थ यह होता

कुछ की किस्मत में धन दौलत, भाग्य किसी का सोता ! 

 

छन्न पकैया छन्न पकैया, प्रगटो अब गिरिधारी

ध्यान धरो अपने भक्तों का, हर लो विपदा सारी !

 

छन्न पकैया छन्न पकैया, विकट समय यह कैसा

लाज बचा लो अपनी गिरिधर, करो पराक्रम ऐसा ! 

 

साधना वैद

Wednesday, September 15, 2021

खेल खेल में - एक लघुकथा

 



शाम होते ही बस्ती के सारे बच्चे खेलने के लिए आ जुटे ! आजकल उनका प्रिय खेल दुर्दांत आतंकियों और देश की सुरक्षा में तैनात फौजियों का होता है ! कुछ बच्चे नकली दाढ़ी लगा आतंकी बन जाते तो कुछ छोटी छोटी लाठियों को मशीनगन की तरह कंधे पर लाद फ़ौजी बन जाते और खेल शुरू हो जाता आतंकियों और फौजियों के बीच लुका छिपी का !

निकलो घर से बाहर ! नहीं तो एक एक को भून दिया जाएगा !दरवाज़े पर ज़ोर की ठोकर मार फ़ौजी घर में छिपे आतंकियों पर गरजा !

तिरंगे कपड़े में मुँह छिपाए एक बूढ़ा थर थर काँपता हुआ बाहर आया !

हम तो इसी गाँव के हैं हुज़ूर आपको ग़लत खबर मिली है ! हम आतंकी नहीं हैं ! आतंकी के भेस में बूढ़ा गिड़गिड़ाया !

फ़ौजी तिरंगा खींच कर जैसे ही ज़मीन पर फेंकने को हुआ आतंकी की भूमिका करने वाला रोहित ज़ोर से चिल्लाया,

पागल हो गया है क्या दीनू ! तिरंगा ज़मीन पर फेंकेगा !और झंडा हाथ में ऊँचा उठा वन्दे मातरम्का जयकारा लगाते हुए उसने दौड़ लगा दी ! फ़ौजी और आतंकी सारे बच्चे उसके पीछे पीछे ‘झंडा ऊँचा रहे हमारा’ नारा लगाते हुए दौड़ पड़े !


साधना वैद

 


Tuesday, September 14, 2021

है भारत की शान तिरंगा

 




 


मस्ती में झूमे

सातों गगन चूमे

तिरंगा प्यारा

 

मिली आज़ादी

विहँसी माँ भारती

प्रफुल्ल देश

 

झूमे मगन

लहराए तिरंगा

हर्षित धरा

 

न्यारा तिरंगा

है भारत की शान

विश्व भर में

 

देता सन्देश

शक्ति, शांति, समृद्धि

गर्वित देश

 

देता है शिक्षा

साहस आध्यात्म की

केसरी रंग

 

देता सन्देश

प्रेम औ' सद्भाव का

सफ़ेद रंग

 

हरित रंग

प्रतीक उन्नति का

समृद्ध देश


अशोक चक्र

प्रतीक है न्याय का

नीलम वर्णी

 

है सुसज्जित

मध्य श्वेत रंग के

धर्म सूचक 

 

देते हैं जान

अपने तिरंगे पे

भारत वासी

 

पूजते इसे

श्रद्धा से झुक कर

हैं देश वासी

 

 

साधना वैद

 

 

 

 

 


Tuesday, September 7, 2021

वर्ण पिरेमिड - कौन जाने

 



क्या

जानें

आओगे

भुलाओगे

कौन बताये

   किस्मत हमारी   

  फितरत तुम्हारी !

 

है

पता

मुझे भी

आसाँ नहीं

दुःख भुलाना

पर करें भी क्या

ज़ालिम है ज़माना

 

हे

प्रभु

आशीष

देना हमें 

न चाहें सुख

कर्तव्य पथ से

न हों कभी विमुख

 

ये

फूल

खिलते

महकते

मुस्कुराते हैं

हमें सुखी कर

  भू पे बिछ जाते हैं !

 

साधना वैद  

 


Sunday, September 5, 2021

गुरु और शिष्य




शिक्षक दिवस पर विशेष

गुरू रहे ना देव सम, शिष्य रहे ना भक्त
बदली दोनों की मती, बदल गया है वक्त !

शिक्षक व्यापारी बना, बदल गया परिवेश
त्याग तपस्या का नहीं, रंच मात्र भी लेश !

बच्चे शिक्षक का नहीं, करते अब सम्मान
मौक़ा एक न छोड़ते, करते नित अपमान !

कहते विद्या दान से, बड़ा न कोई दान  
लेकिन लालच ने किया, इसको भी बदनाम !

कोचिंग कक्षा की बड़ी, मची हुई है धूम
दुगुनी तिगुनी फीस भर, माथा जाये घूम !

साक्षरता के नाम पर, कैसी पोलम पोल
नैतिकता कर्तव्य को, ढीठ पी गए घोल !

सच्चे झूठे आँकड़े, भरने से बस काम
प्रतिशत बढ़ना चाहिए, साक्षरता के नाम !

कक्षा नौ में छात्र सब, दिए गए हैं ठेल
जीवन के संघर्ष में, हो जायेंगे फेल !

 ऐसी शिक्षा से भला, किसका होगा नाम !
लिख ना पायें नाम भी, ना सीखा कुछ काम !

करना होगा पितृ सम, शिक्षक को व्यवहार
रखें शिष्य भी ध्यान में, सविनय शिष्टाचार !

अध्यापक और छात्र में, हो न परस्पर भीत  
जैसे भगवन भक्त में, होती पावन प्रीत !

गुरु होते भगवान सम, करिए उनका मान 
विद्यार्थी संतान सम, रखिये उनका ध्यान !


साधना वैद