तुमसे आख़िरी बार मिलने के बाद
उसी नदी के किनारे कर आई हूँ मैं विसर्जन
उन सभी मधुर स्मृतियों का
जिन्होंने मेरे हृदय में घर बना लिया था,
उन सभी खूबसूरत पलों का
जिनसे हमारी हर सुबह उजली और
हर शाम रंगीन हो जाया करती थी !
कर आई हूँ तर्पण उन वचनों का
जो कभी हमने एक दूसरे का साथ
जन्म जन्मान्तर निभाने के लिए
एक दूसरे का हाथ थाम लिये थे और
कर दिया है श्राद्ध उन सभी सुखानुभूतियों का
जिनके बिना यह जीवन अब एकदम से
बेनूर, बेरंग, बेआस हो जाने वाला है !
तुम्हारी लिखी जिन चिट्ठियों को मैं
अब तक हृदय से लगा कर संजोती आई थी
उनकी राख और चुन चुन कर तुम्हारे दिए
सभी स्मृति चिन्ह और उपहारों के फूल
एक पोटली में बाँध विसर्जित कर आई हूँ
मैं उसी नदी में जिसके किनारे
हमारे प्रेम भरे गीतों के मधुर स्वर
हवाओं में तैरा करते थे !
आज मैं श्राद्ध कर आई हूँ
एक बहुत ही खूबसूरत रिश्ते का
जो मेरे दिल के सबसे करीब था !
साधना वैद
सुप्रभात
ReplyDeleteबहुत सुन्दार यथार्थ परक अभिव्यक्ति |
हार्दिक धन्यवाद आपका जीजी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteआज मैं श्राद्ध कर आई हूँ
ReplyDeleteएक बहुत ही खूबसूरत रिश्ते का , अहा कितना दर्द है।
हार्दिक धन्यवाद तिवारी जी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 03 अक्टूबर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहृदय से धन्यवाद एवं आभार आपका यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी !
ReplyDeleteएक असफल प्रणय गाथा का मार्मिक चित्रण साधना जी। भावपूर्ण काव्य चित्र के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं 🙏🙏🌷🌷
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद रेणु जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteसुप्रभात
ReplyDeleteभावपूर्ण प्रस्तुति की सुन्दर अभिव्यक्ति |
वाह वाह ! क्या बात है ! आज तो किस्मत खुल गयी हमारी ! बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आपका जीजी !
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