चुभता है दंश कभी निर्मम यथार्थ का ?
देखा प्रतिबिम्ब कभी दर्पण में स्वार्थ का ?
भीगी कभी पलकें लख लोगों के कष्टों को ?
पढ़ कर तो देखो निज कर्मों के पृष्ठों को
जानते हो क्या है दुखांत इन कथाओं का ?
पिघला क्या मन सुन संवेदन व्यथाओं का ?
माना हो सर्वश्रेष्ठ प्राणी इस सृष्टि में
भीगते हो मगन निज प्रशंसा की वृष्टि में
लेकिन कब पोंछे हैं आँसू दुखियारों के
चूल्हे कब जलते हैं निर्धन परिवारों के
फेंको ये इंद्रजाल स्वार्थ की प्रथाओं का
मत बैठो मौन सुन संवेदन व्यथाओं का !
जन जन के दुख से है कैसी यह निस्पृहता
क्यों नहीं दिखती अब आँखों में विह्वलता
क्यों नहीं मिलता अब बातों में अपनापन
क्यों नहीं छिलता अब पीड़ा से पत्थर मन
चाहती हूँ बरस जाए विष सब घटाओं का
मन में हो केवल संवेदन व्यथाओं का !
साधना वैद
बहुत सुन्दर भाव लिए रचना |
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत भावप्रवण रचना।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१०-१२ -२०२१) को
'सुनो सैनिक'(चर्चा अंक -४२७४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteपढ़ कर तो देखो निज कर्मों के पृष्ठों को
ReplyDeleteजानते हो क्या है दुखांत इन कथाओं का
सत्य वचन,सटिक अभिव्यक्ति सादर नमस्कार दी
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद कामिनी जी ! आभार आपका !
Deleteमन में हो केवल संवेदन व्यथाओं का !
ReplyDeleteयथार्थ और सटीक अभिव्यक्ति!--ब्रजेंद्रनाथ
हार्दिक धन्यवाद मर्मज्ञ ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत भावपूर्ण रचना, बधाई.
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जेन्नी जी ! दिल से आभार आपका !
Deleteअत्यंत. भावपूर्ण सृजन।
ReplyDeleteसादर।
हृदय से धन्यवाद आपका श्वेता जी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद उर्मिला जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद भारती जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteकाश कि ऐसा हो जाए !
हार्दिक आभार आपका गोपेश जी ! रचना आपको अच्छी लगी मेरा लिखना सफल हुआ ! दिल से बहुत बहुत धन्यवाद आपको !
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