तू ही तू
बस तू ही तू हो
इस दिल में !
बंद आँखों का ख्वाब,
खुली आँखों का मंज़र
जो भी हो
होता रहे बस उसमें
तेरा ही दीदार !
धड़के जो दिल
तो बस सुन कर
तेरा ही नाम
और डूबे जो दिल
तो बस लेकर तेरा
और सिर्फ तेरा ही नाम !
सुनूँ जो कोई आवाज़
तो उसमें तेरा ही ज़िक्र हो
दूँ कोई आवाज़
तो होठों पर बस
तेरा ही नाम हो !
छू ले कभी जो हवा
वो तुझे छूकर लौटी हो
और मुझे छूकर
जाए जो कभी हवा
तो तुझे छूकर ही ठहरे !
और कुछ भी न हो
तेरे मेरे दरमियाँ
और कोई न हो
तेरे मेरे दरमियाँ !
बस एक यही मन्नत है
बस इतनी सी ही मन्नत है !
साधना वैद
स्प्प्रभात
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है |
हार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (15-12-2021) को चर्चा मंच "रजनी उजलो रंग भरे" (चर्चा अंक-4279) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी ! आपका बहुत बहुत आभार ! सादर वन्दे !
Deleteये तो ज़बरदस्त मन्नत है .....
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद संगीता जी ! यह मन्नत आप तक पहुँच गयी ! मैं धन्य हुई ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteसुंदर लेखन आदरणीय ।
ReplyDeleteBahut अच्छा लिखा।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अजय जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteवाह
ReplyDeleteजी ! बहुत बहुत शुक्रिया ग़ाफ़िल जी !
Deleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार !
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