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Monday, December 13, 2021

मन्नत

 



तू ही तू

बस तू ही तू हो

इस दिल में !

बंद आँखों का ख्वाब,

खुली आँखों का मंज़र

जो भी हो

होता रहे बस उसमें

तेरा ही दीदार !

धड़के जो दिल

तो बस सुन कर

तेरा ही नाम

और डूबे जो दिल

तो बस लेकर तेरा

और सिर्फ तेरा ही नाम !

सुनूँ जो कोई आवाज़

तो उसमें तेरा ही ज़िक्र हो

दूँ कोई आवाज़

तो होठों पर बस

तेरा ही नाम हो !

छू ले कभी जो हवा

वो तुझे छूकर लौटी हो

और मुझे छूकर

जाए जो कभी हवा

तो तुझे छूकर ही ठहरे !

और कुछ भी न हो

तेरे मेरे दरमियाँ

और कोई न हो

तेरे मेरे दरमियाँ !

बस एक यही मन्नत है

बस इतनी सी ही मन्नत है ! 

 

साधना वैद


12 comments :

  1. स्प्प्रभात
    बहुत सुन्दर लिखा है |

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    1. हार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार !

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  2. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (15-12-2021) को चर्चा मंच        "रजनी उजलो रंग भरे"    (चर्चा अंक-4279)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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    1. हार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी ! आपका बहुत बहुत आभार ! सादर वन्दे !

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  3. ये तो ज़बरदस्त मन्नत है .....

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    1. हार्दिक धन्यवाद संगीता जी ! यह मन्नत आप तक पहुँच गयी ! मैं धन्य हुई ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  4. Bahut अच्छा लिखा।

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    1. हार्दिक धन्यवाद अजय जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  5. Replies
    1. जी ! बहुत बहुत शुक्रिया ग़ाफ़िल जी !

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  6. हार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार !

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