ज़िंदगी यूँ तो संघर्षमयी रही सदा से लेकिन फिर भी कभी कभी प्रभु अनायास ही झोली में सुखद पलों की ऐसी अनमोल सौगातें डाल देते हैं कि लगता है अब जीवन में इससे अनमोल और कुछ घटित हो ही नहीं सकता ! ऐसा ही एक वाकया मेरी ज़िंदगी में भी घटित हुआ जिसे मैं जीवन भर कभी भूल नहीं पाउँगी और वह प्रसंग मेरे जीवन का सबसे खूबसूरत प्रसंग बन कर जीवन भर मेरे साथ साथ चलता रहेगा !
यह घटना सन् १९६८ की है ! दिन महीना समय अब याद नहीं रहा ! शायद सितम्बर या अक्टूबर का रहा होगा ! मेरे विवाह को साल भर भी नहीं हुआ था ! हम पति पत्नी दिल्ली के करोलबाग में एक बरसाती में रहते थे और अपनी कच्ची गृहस्थी को सजाते सँवारते फाकामस्ती में दिन गुज़ार रहे थे ! उन दिनों डी टी य़ू की लोकल बस में रविवार के दिन एक रुपये का टिकिट मिलता था सारे दिन के लिए ! आप कहीं भी आयें जाएँ कोई बंदिश नहीं थी ! लिहाजा वह दिन होता था मौज मस्ती का ! हम पूरे सप्ताह अखबारों में देख देख कर रविवार को होने वाले उन कार्यक्रमों की सूची बना लेते जो या तो फ्री होते थे या जिनका टिकिट बहुत ही कम हुआ करता था ! रविवार का बेसब्री के साथ इंतज़ार रहता था ! उस दिन हम सुबह से ही दो टिकिट लेकर बस में सवार हो जाते और अपनी लिस्ट के हर कार्यक्रम का आनंद भरपूर उठाते ! लंच के लिए कभी केले, कभी सेव संतरे या कभी सैंडविच से काम चल जाता ! देर रात को घर लौटते ! पूरे दिन का खर्च मुश्किल से दस बारह रुपये और मनोरंजन भरपूर !
उस दिन भी हम घूमने निकले थे तो दिल्ली के मावलंकर हॉल के पास ही एक कंसर्ट हॉल में किसी बड़े नामी कलाकार का प्यानो वादन का कार्यक्रम देखने के इरादे से निकले थे ! संगीत का हम दोनों को ही भारी शौक और उस कार्यक्रम में प्रवेश नि:शुल्क था ! जैसे ही वहाँ पहुँचे मावलंकर हॉल के गेट पर कई लोग किसी विशिष्ट अतिथि के स्वागत के उद्देश्य से फूलों के गुलदस्ते और मालाएं लेकर खड़े हुए थे ! हम भी कुछ ठिठक गए ! तभी बड़ी ही गर्मजोशी से उन्होंने हमें मुस्कुरा कर अभिवादन किया और अन्दर हॉल में जाने का संकेत किया ! हमें तो पता भी नहीं था कि यहाँ क्या हो रहा है लेकिन कुछ इतने विनम्र आग्रह के कारण और कुछ जिज्ञासावश हम भी अन्दर हॉल में पहुँच गए ! वहाँ जो दृश्य देखा वह हमारी कल्पना से परे था ! अन्दर उस वर्ष के ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होने वाले वरिष्ठ साहित्यकार कविवर सुमित्रानंदन पन्त का अभिनन्दन समारोह चल रहा था और साहित्याकाश के सभी चमकते सितारे उस समय मंच पर आसीन थे ! श्री सुमित्रानंदन पन्त, श्री हरिवंश राय बच्चन, श्रीमती तेजी बच्चन, श्री रामधारी सिंह दिनकर, डॉ. प्रभाकर माचवे, श्री विष्णू प्रभाकर, बाबा नागार्जुन ! इनके अलावा और भी कई बड़े बड़े साहित्यकार ! कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री जगजीवन राम जी की अगवानी के लिए आयोजकों का बड़ा समूह गेट पर तैनात था और कदाचित उनके आगमन पर कोई व्यवधान उत्पन्न न हो इसीलिये हमें जल्दी से अन्दर भेज दिया गया था ! जो भी हुआ हमारे लिए तो गर्व के अनमोल पलों की थाती लेकर आया था वह पल ! वैसे इनमें से कई साहित्यकारों को कवि सम्मेलनों में हमने पहले देखा भी था और सुना भी था लेकिन सबको एक साथ एक ही मंच पर देखना यह निश्चित रूप से आशातीत था और इसे मैं अपना परम सौभाग्य मानती हूँ ! सब बहुत ही प्रसन्न थे ! अवसर ही ऐसा था ! मुझे स्मरण है बच्चन जी परिहास के मूड में थे ! उन्होंने रामधारी सिंह दिनकर जी की चिबुक उठाते हुए हँस कर माइक पर जैसे ही उनसे कहा, “सुमुखी तुम कितनी सुन्दर हो”, हॉल ठहाकों से गूँज उठा और एकदम गोरे चिट्टे दिनकर जी का चेहरा हँसते हँसते बिलकुल लाल हो गया था !
यह प्रसंग मेरे जीवन की अविस्मरणीय स्मृतियों में मूल्यवान हीरे की तरह दमकता रहता है ! दिल्ली के रविवार के सैर सपाटों की लम्बी सूची है लेकिन यह प्रसंग सबसे अनूठा और सबसे अनमोल है जिसे मैं कभी नहीं भूल सकती !
नोट - यह चित्र उस अवसर का नहीं है ! वह युग मोबाइल का नहीं था ! वरना कम से कम हर साहित्यकार को फोकस करते हुए २० - २५ तस्वीरें तो हमने खींच ही ली होतीं जो हमारे पास अनमोल धरोहर के रूप में जीवन भर साथ रहतीं ! यह तो इंटरनेट पर एक फोटो मिली है जिसमें कविवर सुमित्रानंदन पन्त, श्री हरिवंश राय बच्चन और श्रीमती तेजी बच्चन जी एक साथ एक मंच पर उपस्थित हैं जो उस दिन के कार्यक्रम में भी मौजूद थे इसलिए साभार गूगल के इस फोटो को हम अपने संस्मरण के साथ उद्धृत करने की स्वतन्त्रता ले रहे हैं ! काश उस दिन हमारे साथ कैमरा भी होता !
चित्र - साभार गूगल
साधना वैद
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (27-12-2021 ) को 'चार टके की नौकरी, लाख टके की घूस' (चर्चा अंक 4291) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
हार्दिक धन्यवाद एवं बहुत बहुत आभार आपका रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
Deleteओह साधना जी! क्या सचमुच कोई आप जितना भाग्यशाली हो सकता है? पढ़कर ही इतना रोमांचित हो गया मन। भला उन पलों को जीकर आपको कितनी खुशी हुई होगी ये सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।सुमित्रानंदन पन्त, श्री हरिवंश राय बच्चन, श्रीमती तेजी बच्चन, श्री रामधारी सिंह दिनकर, डॉ. प्रभाकर माचवे, श्री विष्णू प्रभाकर, बाबा नागार्जुन इनको अपनी आंखो से देखना क्या कोई छोटी बात है!!
ReplyDeleteहार्दिक आभार और अभिनंदन इस प्यारे से संस्मरण के लिए 🙏🌷🌷❤️❤️
जी ! आपने बिलकुल सही कहा रेणु जी ! वे पल मेरे जीवन के सबसे अनमोल पल थे और मेरे जीवन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार कि मेरा यह संस्मरण अच्छा लगा ! सप्रेम वन्दे !
Deleteमुझे तो पढ़के ही आनंद आ गया । कितना भव्य दृश्य रहा होगा । सच बहुत ही कीमती क्षण । आपको मेरा अभिवादन ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteसुप्रभात
ReplyDeleteउम्दा लिखा हैं |
सच में अद्भुत क्षण रहा होगा वो!
ReplyDeleteजिनके बारे में हम सिर्फ किताबों में पढ़ते हैं जिनसे हमारी मुलाकात सिर्फ किताबों के शब्दों के जरिए होती उनसे मुलाकात बहुत खूबसूरत क्षण!
मैम मैं जानना चाहती हूँ कि क्या जब आपकी मुलाकात महाकवियों से हुई थी तब आप लेखनी करतीं थीं?