Saturday, March 26, 2022

सायली छंद

 



आँसू

बह निकले

खाली कर गए 

आँखों का 

सागर 


तुम 

जो आये

आ गई बहार

खिल उठा 

चमन 


हँसीं 

जो तुम 

खिल उठी कलियाँ

फैल गई 

खुशबू 


सूना

कर गई

घर का आँगन

विदा होकर 

बेटी


मगन

देश हमारा

अभूतपूर्व यह जीत

हुई जनता 

हर्षित


आत्मा 

निर्बंध हुई 

देह का पिंजड़ा

जैसे ही 

छूटा 


वेगवती 

चंचल चपल 

नदिया हुई शांत 

सागर से 

मिल 




साधना वैद

13 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना है दीदी। इस छंद में मैंने बहुत कम रचनाएँ देखी हैं।

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    1. हार्दिक धन्यवाद मीना जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  2. हार्दिक धन्यवाद कामिनी जी ! आपका हृदय से बहुत बहुत आभार ! सप्रेम वन्दे !

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  3. छन्द में बन्धे सभी काव्य मुक्तक शानदार है आदरनीय साधना जी जीवन के सभी रंग बहुत अच्छे से उभरे हैं।सादर बधाई और शुभकामनाएं 🙏❤❤

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    1. प्रोत्साहित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद रेणु जी ! हार्दिक आभार आपका !

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  4. सुंदर रचना। रचना के साथ छंद के विषय में संक्षिप्त जानकारी भी हो तो मुझे जैसे पाठक लाभान्वित होंगे। आभार।

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    1. हार्दिक धन्यवाद विकास नैनवाल जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  5. सुप्रभात
    सुन्दर सायली छंद साधना

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    1. हार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  6. इस छंद के बारे में पहली बार पढ़ रही हूं ।
    इसका क्रम 1,2,3,2,1, शब्द क्रम लग रहा है ।
    बेहतरीन भाव लिए सुंदर रचनाएँ ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद संगीता जी ! इस छंद की एक विशेषता और है कि यदि नीचे से ऊपर की और भी पढ़ा जाए तो अर्थ में बदलाव नहीं होना चाहिए और पढ़ने में व्याकरण का दोष नहीं आना चाहिए ! आपको छंद पसंद आये आपका बहुत बहुत आभार !

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  7. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद आलोक जी !

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