आँसू
बह निकले
खाली कर गए
आँखों का
सागर
तुम
जो आये
आ गई बहार
खिल उठा
चमन
हँसीं
जो तुम
खिल उठी कलियाँ
फैल गई
खुशबू
सूना
कर गई
घर का आँगन
विदा होकर
बेटी
मगन
देश हमारा
अभूतपूर्व यह जीत
हुई जनता
हर्षित
आत्मा
निर्बंध हुई
देह का पिंजड़ा
जैसे ही
छूटा
वेगवती
चंचल चपल
नदिया हुई शांत
सागर से
मिल
साधना वैद
बहुत सुंदर रचना है दीदी। इस छंद में मैंने बहुत कम रचनाएँ देखी हैं।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मीना जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteहार्दिक धन्यवाद कामिनी जी ! आपका हृदय से बहुत बहुत आभार ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteछन्द में बन्धे सभी काव्य मुक्तक शानदार है आदरनीय साधना जी जीवन के सभी रंग बहुत अच्छे से उभरे हैं।सादर बधाई और शुभकामनाएं 🙏❤❤
ReplyDeleteप्रोत्साहित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद रेणु जी ! हार्दिक आभार आपका !
Deleteसुंदर रचना। रचना के साथ छंद के विषय में संक्षिप्त जानकारी भी हो तो मुझे जैसे पाठक लाभान्वित होंगे। आभार।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद विकास नैनवाल जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteसुप्रभात
ReplyDeleteसुन्दर सायली छंद साधना
हार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteइस छंद के बारे में पहली बार पढ़ रही हूं ।
ReplyDeleteइसका क्रम 1,2,3,2,1, शब्द क्रम लग रहा है ।
बेहतरीन भाव लिए सुंदर रचनाएँ ।
हार्दिक धन्यवाद संगीता जी ! इस छंद की एक विशेषता और है कि यदि नीचे से ऊपर की और भी पढ़ा जाए तो अर्थ में बदलाव नहीं होना चाहिए और पढ़ने में व्याकरण का दोष नहीं आना चाहिए ! आपको छंद पसंद आये आपका बहुत बहुत आभार !
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आलोक जी !
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