Wednesday, April 27, 2022
बंद मुट्ठी
Saturday, April 23, 2022
मेरी पुस्तकें
आज पुस्तक दिवस पर मेरे चंद हाइकु
आप सभी के अवलोकनार्थ
मेरी पुस्तकें
मेरी पुस्तक
भरे सुख से झोली
है हमजोली
युक्ति सुझाए
चिंता के सागर से
पार लगाए
गुदगुदाए
मन को बहलाए
सुख दे जाए
पल भर में
सातों सागर पार
हमें ले जाए
अपरिचित
अनचीन्हे स्थानों की
सैर कराए
अद्भुत लोग
अद्भुत प्रदेशों की
कथा सुनाए
मेरी पुस्तकें
सबसे अंतरंग
दोस्त हैं मेरी
साधना वैद
Sunday, April 17, 2022
उड़ने लगा है मेरा भी मन
देखो लग गए हैं पंख
मेरे सपनों को
थिरकने लगे हैं मेरे पाँव
और फ़ैलने लगे हैं
पानी के ढेर सारे
छोटे बड़े वलय मेरे चहुँ ओर
मेरे सामने है
खारे पानी से भरे सागर का
असीम, अगाध, अथाह विस्तार
और मेरे मन में है मीठे सपनों की
बहुत ऊँची उड़ान !
इतनी ऊँची कि जहाँ तक
कोई पंछी, कोई जहाज न पहुँच सके !
सब कहते हैं मैं बड़ी हो गयी हूँ !
लेकिन देखो तो ज़रा
कहाँ से बड़ी हो गयी हूँ मैं ?
पानी में मेरा प्रतिबिम्ब देखो
कितनी छोटी सी तो हूँ मैं !
बिलकुल नन्ही सी
अबोध, मासूम, नाज़ुक, भोली !
तितलियों को अपनी झोली में समेटे
यहाँ वहाँ उड़ती फिरती हूँ मैं भी
तितलियों की ही तरह !
हाँ इतना ज़रूर है
तितलियों के साथ
अब उड़ने लगा है मेरा भी मन
क्या यही होता है बड़ा होना ?
साधना वैद
Thursday, April 14, 2022
चिंगारी
कब से दबी हुई
एक नन्ही सी चिंगारी
मेरे मन के गहरे गह्वर में !
बहुत कोशिश की
हालात की आँधियों ने
उसे बुझाने की,
वक्त की झंझा ने
उसे उड़ाने की,
ज़िंदगी की तूफानी बारिश ने
उसे डुबाने की,
लेकिन प्राण प्राण से
हथेलियों की ओट दे
मैंने उसे आज तक जिलाए रखा है
सिर्फ इसलिये कि एक दिन
अपने हौसले, अपनी हिम्मत,
अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और
अपने संकल्प की हवा दे
मैं उसे फिर से एक प्रचंड
दावानल में बदल सकूँ
जिसमें मुझे संसार की
सारी रूढ़ियों को,
सारी विसंगतियों को और
सारी शोषणकारी वर्जनाओं को
जला कर राख करना है
ताकि यह धरती सबके लिए
समान रूप से
रहने योग्य बन सके !
साधना वैद
Tuesday, April 12, 2022
शोक गीत
नहीं चाहती आर्त हृदय की
मेरी कोई भी पुकार अब
कभी भी तुम तक पहुँचे,
नहीं चाहती व्यथा विगलित
मेरा एक भी शब्द कभी भूले से भी
तुम्हारी आँखों के सामने से गुज़रे ,
नहीं चाहती वेदना से जर्जर
मेरे अवरुद्ध कंठ का एक भी
रुँधा हुआ स्वर कभी गलती से भी
तुम्हारे कानों में पड़े,
नहीं चाहती असह्य वेदना से छलक आये
मेरे आँसुओं को कभी तुम्हारी
उँगलियों का किनारा मिले !
इन सारी इच्छाओं की मृत देहों को
अपने मन के श्मशान में मैं
बहुत पहले ही अग्नि को
समर्पित कर चुकी हूँ !
अब तो जो उस वीराने में
रह रह कर सुनाई देता है
वह सिर्फ एक शोक गीत है
जिसे लिखा भी मैंने है,
स्वरबद्ध भी मैंने ही किया है,
गाया भी मैंने है और जिसे
सुनती भी सिर्फ मैं ही हूँ !
साधना वैद
Friday, April 8, 2022
रामनवमी
चैत्र का महीना
यही समय तो बताया था ना
राजवैद्य ने तुम्हारे शुभागमन के लिए !
अपने अंतर के सारे द्वार खोल
मैं आतुर हो उठी हूँ तुम्हारे स्वागत के लिए
तुम्हें अपनी चिर तृषित बाहों में
झुलाने के लिए
तुम्हें अपने हृदय से लगा
जी भर कर दुलारने के लिए !
तुम्हारी आहट एकाग्रचित्त हो
सुन रही हूँ मन प्राण से जैसे
मेरी सारी इन्द्रियाँ केन्द्रित हो गयी हैं
मेरी श्रवणेद्रियों में ही !
अब एक एक पल भारी हुआ जाता है
आ जाओ ना मेरे हृदयांश !
आलोकित कर दो इस राजमहल को
अपने तेजोमय प्रकाश से,
पुलकित कर दो हर हृदय को
अपनी उज्जवल मुस्कान से,
आल्हादित कर दो
अपनी चिर तृषित माँ को
उसके कंठ में अपने भुजहार डाल कर
चैत्र मास की यह अवधि कहीं
तुम्हारी प्रतीक्षा में ही बीत न जाए
मेरे हृदयांश !
अयोध्या का सूर्य अब
Tuesday, April 5, 2022
पकवान
मोहल्ले में बच्चों का हुजूम हुडदंग
में व्यस्त था ! सबके चहरे लाल हरे नीले पीले गुलाल और रंग से ऐसे लिपे पुते थे कि
पहचानना भी मुश्किल था ! ढोल बजाते, गीत गाते, हर आने जाने वाले पर रंग भरे
गुब्बारे से निशाना लगाते सब मस्ती में डूबे हुए थे ! घर घर जाकर अपना ढोल बजाते,
रंग गुलाल लगाते, त्यौहारी पाते और सबका आशीर्वाद बटोरते बच्चे होली का पर्व
उत्साह से मना रहे थे !
शर्मा जी के यहाँ जैसे ही बच्चों का दल पहुँचा उनकी बुज़ुर्ग माताजी थाली में ढेर
सारी गुजिया, शकर पारे, मठरियाँ और अन्य पकवान ले आईं बच्चों के लिए ! गुजिया देख
कर बच्चों की आँखें चमक उठीं ! सब प्रेम से खा रहे थे लेकिन दरवाज़े की ओट में खड़ा
मोहन पकवान खाने की बजाय चुपचाप बाहर सड़क के नज़ारे देख रहा था !
“अरे बेटा तुम क्यों नहीं खा रहे हो गुजिया ! आओ अन्दर ! तुम भी लो ना सबके साथ !”
“नहीं आंटी जी ! मुझे गुजिया नहीं चाहिए !” और वह धीरे धीरे बाहर चला गया !
“इसे क्या हुआ है ? इसने गुजिया क्यों नहीं खाई ?” माँ जी ने आश्चर्य से पूछा !
“इसकी छोटी बहन को दो साल पहले एक आंटी ने पकवान की थाली से गुजिया उठा लेने पर बहुत मारा था तब से इसने गुजिया खाना छोड़ दिया है !”
एक बच्चा तपाक से बोला ! इतना कह कर इशारे से माँजी के कान के पास फुसफुसाते हुए उसने बताया, “आंटी जी यह छोटी जात का है ना इसीलिये !”
माँजी के चहरे पर पीड़ा के भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे थे ! उन्होंने बच्चे से पूछा, “तुम जानते हो इसका घर कहाँ है ? मुझे ले चलोगे उसके यहाँ ?”
थोड़ी देर में पकवानों से भरा एक बड़ा सा डिब्बा लेकर माँजी मोहन के द्वार पर खड़ी हुई थीं और मोहन और उसकी छोटी बहन को स्वाद ले लेकर गुजिया खाते हुए देख कर हर्षित हो रही थीं !
साधना वैद
Friday, April 1, 2022
अरदास
भरोसा
टूट गया
छलनी हुआ हृदय
बातें सुनके
किसीकी
सांत्वना
नहीं कोई
इससे बढ़ कर
साथ मिला
तुम्हारा
सहारा
कोई नहीं
संसार भर में
आँचल मिला
तुम्हारा
माँ
समेट लेना
गोदी में अपनी
जग से
बचाना
माँ
दुबका लेना
आँचल में अपने
दुख से
छिपाना
सुकून
मिलेगा मुझे
आँचल में तेरे
जब मैं
सोऊँगी
हल्का
हो जाएगा
दग्ध हृदय मेरा
जब मैं
रोऊँगी
घाव
भर जायेंगे
पल में सारे
स्पर्श से
तुम्हारे
पास
जो रहोगी
हो जायेंगे दूर
सब दुःख
हमारे !
प्रार्थना
छोटी सी
सुन लेना माता
बेटी की
अपनी
कृतज्ञ
रहेगी सदा
अगर मान लोगी
बेटी की
विनती !
साधना वैद