जानती हूँ भींच ली है तुमने मुट्ठी
दबोच लिए हैं मेरे सारे सपने,
मेरी आशाएं, मेरी अभिलाषाएं और
रोक लगा दी है मेरी हर उड़ान पर,
मेरी हर कल्पना पर, मेरी हर सोच पर !
लेकिन क्या जाना है तुमने कभी
बीज को जितना गहरा
मिट्टी में दबाया जाता है
उससे उतना ही सुदृढ़, उतना ही सशक्त
और उतना ही विराट वृक्ष अंकुरित होता है !
मेरा अनुरोध है तुमसे
मत खोलना इस मुट्ठी को तुम कभी भी
मैं नहीं चाहती कि अपार संभावनाओं से भरे
ये बीज तुम्हारी मुट्ठी खुलते ही
निर्जीव हो जाएँ और उनके पनपने की
सारी संभावनाएं ही समाप्त हो जाएँ !
उनके अंकुरित होने के लिए
आक्रोश की गर्मी, दुःख के आँसू और
क्षोभ की हवा की बहुत ज़रुरत है
जब तक तुम्हारी यह मुट्ठी बंद रहेगी
इन बीजों को इन सभी तत्वों की समुचित खाद
भरपूर मात्रा में मिलती रहेगी !
साधना वैद
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28-04-22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4414 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति चर्चा मंच की शोभा बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबाग
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार दिलबाग जी ! सादर वन्दे !
Deleteलाज़बाब रचना।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद उर्मिला जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत सुन्दर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteवाह ! चुनौती को अवसर में बदलने की कला
ReplyDeleteआपको रचना अच्छी लगी मेरा लिखना सार्थक हुआ ! हार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteजितनी विपरीत हालात होंगे उतने दृढ विचार पनपते हैं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
हार्दिक धन्यवाद कविता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबीज को जितना गहरा
ReplyDeleteमिट्टी में दबाया जाता है
उससे उतना ही सुदृढ़, उतना ही सशक्त
और उतना ही विराट वृक्ष अंकुरित होता है !
कितनी गहरी और सच्ची बात कह दी आपने ..,लाजवाब सृजन । सादर वन्दे!
वाह!बहुत सुंदर।
ReplyDeleteलेकिन क्या जाना है तुमने कभी
बीज को जितना गहरा
मिट्टी में दबाया जाता है
उससे उतना ही सुदृढ़, उतना ही सशक्त
और उतना ही विराट वृक्ष अंकुरित होता है.. वाह!
sunder bhavprabal rachna !!
ReplyDeleteस्वागत है अनुपमा जी ! हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका !
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