यह कैसी रिक्तता
आकर ठहर गयी है
मेरे मन मस्तिष्क में !
कोई ख़याल नहीं,
कोई कल्पना नहीं,
कोई विचार नहीं,
कोई अनुभूति भी नहीं
फिर कहूँ भी तो क्या !
न अभिव्यक्ति के लिए
कुछ उमड़ता है मन में
न ही पहले की तरह
शब्द बेताब दिखाई पड़ते हैं
कुछ कहने को,
कुछ सुनाने को,
कुछ बताने को !
बस एक खाली कलश सी
बहती जाती हूँ
समय की धारा के साथ !
जिस दिन तूफ़ान की ज़द में
आने के बाद
थोड़ा सा भी पानी
इस कलश में भर जायेगा
मेरा वजूद
धारा की अतल गहराइयों में
समा जाएगा बिलकुल खामोशी से
और किसीको पता भी नहीं चलेगा
किस भँवर में कौन कहाँ डूबा
और किसकी कौन सी कहानी
अनसुनी ही रह गयी !
साधना वैद
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(०६-०५-२०२२ ) को
'बहते पानी सा मन !'(चर्चा अंक-४४२१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ६ मई २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार प्रिय श्वेता जी ! सभी साहित्यकारों का हृदय से अभिनन्दन !
Deleteउदास मन की गहन अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनुपमा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteवाह!बहुत खूब!
ReplyDeleteदिल से धन्यवाद शुभ्रा जी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनुराधा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत भावपूर्ण
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ज्योति जी ! स्वागत है आपका इस ब्लॉग पर ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteहार्दिक धन्यवाद ज्योति भाई जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना |
ReplyDeleteवाह ...... बहुत खूबसूरत एहसास
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद संजय ! बहुत बहुत आभार आपका !
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