फूल
छा गए खिल कर धरा पर
हो गयी वसुधा मगन
खिल उठा मधुबन
हुआ सुरभित समूचा ये चमन
फूल कोमल गात
के
अपराजिता,
मधुमालती
चाँदनी, चम्पा, चमेली
को धरा पर वारती !
प्रकृति कितनी मुग्ध है
फूलों की इस सौगात पर
नाचते हैं तुहिन कण
हर पंखुरी हर पात पर !
फिर भी हर इक फूल की
आँखें हैं नम मुखड़ा मलिन
हो पड़ा जैसे उपेक्षित
रत्न सागर के पुलिन
कौन जाने किस घड़ी
झरना उसे है शाख से
सोच कर आकुल है मन
बढ़ना है पर विश्वास से !
साधना वैद
साधना वैद
बहुत खूब । जीवन आगे बढ़ने का नाम है ।।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद संगीता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
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