Wednesday, June 22, 2022

लगा दहकने सूरज

 



है बैसाख महीना सबकी आफत आई
लगा दहकने सूरज सबकी शामत आई !

ताल, तलैया, नदिया, सरवर खौल रहे हैं
खग, मग, वनचर व्याकुल होकर डोल रहे हैं
अभी से हैं ये हाल ज्येष्ठ क्या होगा भाई
लगा दहकने सूरज सबकी शामत आई !

सुबह सवेरे गैया ने बस इतना बोला
मत बरसाना आग मेरा बछड़ा है भोला
सुनते ही रिस गए हमारे दिनकर भाई
लगा दहकने सूरज सबकी शामत आई !

धरती ने अपनी आँखें बस खोली ही थी
कम कर लो कुछ ताप चिरौरी इतनी की थी
इतना सुनते ही सूरज को रिस क्यों आई ?
लगा दहकने सूरज सबकी शामत आई !

भँवरे तितली नहीं बाग़ में जाते हैं, ना
तोता मैना, कोयल बुलबुल गाते गाना
सूखे जल के स्त्रोत कंठ सूखा है भाई
लगा दहकने सूरज सबकी शामत आई !


साधना वैद



4 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई

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    1. हार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  2. ये शामत तो हमने ही बुलाई
    अंधाधुंध करी पेड़ों की कटाई ।
    आपने भी सबको एक
    बेहतरीन रचना पढ़वाई ।

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    1. वाह वाह ! इतनी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद संगीता जी ! हृदय से आभार आपका !
      आपकी इतनी शानदार प्रतिक्रिया
      हर्ष से फूल उठा मेरा हिया !

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